हम मे से कई लोग अच्छा काम करना चाह्ते हे, लेकिन कई बार दुसरे लोग जो इस भावना को नही समझते, कोई ना कोई कमी कोई ना कोई बात जरुर निकालेगे, जिस से उस काम करने वाले को किसी तरह से अपने मकसद से हटाया जाये, उस को नीचा दिखाया जाये, आज का चिंतन इसी बात पर हे....
तो लिजिये आज का चिंतन आप के सामने हे....
एक मुह्ल्ले मे एक गरीब बुढिया रहती थी, उस के दो जवान बेटे थे, लेकिन दोनो ही उसे इस बुढापे मे छोड कर बाहर दुसरे शहर मे चले गये नोकरी चाकरी करने के लिये, बुढिया दिन भर इधर उधर घुमती, फ़िर थोडा बहुत खाना बना कर खाती, अपना पेट भर लेती, लेकिन अब उसे यह जिन्दगी बेकार लगती, उसे लगता, अब वो बेकार जिन्दा हे किसी काम की नही, बस खाना ही खाती हे।
वह बुढिया जिस गली मे रहती थी, उसी गली के सामने एक नाला बहता था, जिस की वजह से वहां बहुत कीचड रहता था, ओर बरसात के मोसम मे तो ओर भी गन्दा हाल हो जाता था, एक बार एक परदेशी वहां से गुजरा तो उस का पेर फ़िसल गया , जिस के कारण उसे बहुत चोट आई, बुढिया उसे सहारा दे कर अपने घर तक लाई, ओर उसकी चोट पर पट्टी वगेरा बांधी, जब थोडा दर्द ठीक हुआ तो वह राहगीर इस मां का धन्यवाद करके चला गया।
अब उस बुढिया को जीने का एक सहारा एक मकसद मिल गया, हर शाम को बुढिया उस स्थान पर एक दीपक जला कर रख देती ताकि हर आने जाने वाले को मुस्किल ना हो, पहले पहल लोगो ने इसे बुढिया की सनक समझा, ओर उस का मजाक भी उडाया, लेकिन जब देखा की कई महीनो से उस दीपक की वजह से वहां कोई दुर्घटना नहि हुयी, तो सभी उस बुढिया की तारीफ़ करने लगे, कहते हे उस बुढिया के मरने के बाद भी उस गली वाले नियम से बारी बारी अब भी वहां दीपक जलाते हे।
चलिये हम भी कोई ऎसा दीपक जलाये जिस से लोगो को सहारा मिले राह मिले, ओर जो दीपक जलाये उस दीपक से अगला दीपक जलाये तो सभी भटके हुओ को रास्ता मिल जाये।
wah, achha udahran.aabhar achhi post padhne ka mauka dene ka
ReplyDeleteनिश्चीत ही भाटिया जी मरने के पहले यह सुकुन मै अवश्य ही चाहुंगा !!
ReplyDeleteएक और अच्छा और व्यवहारिक विचार !
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त। सच में अंधकार चाहे जितना पुराना हो एक नन्हा सा दीपक सदियो-सदियों का अंछकार मिटा सकता है। अगर हम सब अपने अपने स्तर पर एक-एक दीप जलाते चले तो चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश होगा।
ReplyDeleteरमेश
अति उत्तम विचार।
ReplyDeleteachhi seekh raj ji.....
ReplyDelete" the story contain a hidden mesaage of humanity and emotions for others, a very touching story, hope your message goes deep into every body's heart "
ReplyDeleteRegards
बहुत शिक्षा दायक और प्रेरणास्पद कहानी
ReplyDeleteसुनाई आपने ! बहुत धन्यवाद आपका ! पर
आजकल ऎसी अम्माओं का नितान्त अभाव
है ! पर हीरा कोहीनूर तो एकाध ही निकलता है
जो सबको रोशनी देता है ! और श्रद्धा स्वरुप
दिया जलाना भी हमारी नेक भावना को ही
व्यक्त करता है ! हमारी तरफ़ से भी अम्माजी
को प्रणाम !
raaj ji ,aap jo drishtant prastut karte hain,wah sahi arthon me ek bahut achhi baat sikha jaati hai,
ReplyDeletemaksad jeene ka isi tarah dhoondhna chahiye,
bahut achha laga
भूत काल की बहुत सुंदर कहानी सुनाई आपने !
ReplyDeleteसारे जिंदा मनुष्य इतने सज्जन हो जाए तो ये
धरती ही स्वर्ग हो जाए ! अम्माजी को नमन !
काश ऐसा निस्वार्थ मकसद हम सब खोज सकें!
ReplyDelete"koi esa dee jalaye ki jisase logo ko sahara mil sake"
ReplyDeletesarahaniy bahut hi prerak post . abhaar
सच कहा भाटिया जी, एक जिन्दगी का मकसद तलाश लेना चाहिये।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
अच्छी सबक थी, याद रखूंगा सर।
ReplyDeleteबहुत अच्छा उदाहरण दीया है।
ReplyDeleteऔर पढ कर बहुत अच्छा लगा।
पहले तो लगा की जो राहगीर गीरा वो उसका बेटा ही होगा।
Yes, it is very important in life to find the right direction & aim.
ReplyDeleteब्हुत प्रेरक कथा है।आभार।
ReplyDeleteइस दीपक का उजाला हमेसा कायम रहे यही प्रार्थना है
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी राज जी ,बहुत अच्छी सिख मिली इस कहानी से .
ReplyDeleteआपकी जानकारी के दोनों :मेरे ब्लोग्स वाणी और मंथन बंद हो गए हैं ,जिनके स्थान पर मैंने वीणापाणी जिसका URL http://vaniveenapani.blogspot.com/ हैं .और आरोही जिसका URL हैं http://aarohijivantarang.blogspot.com/ शुरू कर दिए हैं .
प्रेरक प्रसंग...
ReplyDeleteअन्धकार को क्यों धिक्कारें,
नन्हा सा एक दीप जलायें...
यहाँ आने में मुझसे देर हुई, इसका अफ़सोस होने लगा है। सादर।
अम्माजी को तिवारी साहब का सलाम !
ReplyDeleteबहुत उम्दा सीख ! धन्यवाद !
बहुत ही प्रेरक कहानी है ! अम्मा को प्रणाम !
ReplyDeleteप्रेरक तो है लेकिन आजकल के जमाने में अव्यवहारिक है, वजह साफ है...किसी को किसी से मतलब नहीं है....क्योंकि अपने से ही फुर्सत लोगों को कम मिलती है, दुनियादारी की कौन कहे। एकाध उदाहरण हैं....वैसे शायद अनिल पुसदकर के ही पोस्ट पर पता चला था कि एक अमीर IAS अफसर बिना वेतन काम करते हैं......मात्र सेवा हेतु, ऐसे लोग कम ही हैं।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट।
प्रेरकता से भरपूर..
ReplyDeleteआभार
राज भाई !
ReplyDeleteआपका यह लेख आज की आवश्यकता है ! आपने बहुत सुंदर द्रष्टान्त दिया है, मगर इस विषय पर आपको और पढ़ना चाहता हूँ ! यह सबकी आवश्यकता है !