भैंस चालीसा
दुष्यंत कुमार द्वारा
महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस,
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस,
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं,
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अकल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी एम बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी एम बनवायो
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस।एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
अकल को कोई देख ना पावे- भैंस दरस साक्षात दिखावे
अकल पढाई करन से आवे- भैंस कभी स्कूल ना जावे
भैंस के डाक्टर मौज उङावैं- अकल के डाक्टर काम ना पावैं
अकलमन्द जग से डरै,भैंस मस्त पगुराय
भैंस चलाये सींग तो, अकलमन्द भग जाय
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस कभी ना बकती गारी
भैंस कभी अतंक ना करती- भैंस मेरी भगवान से डरती
तासौं भैंस सदा मुसकावै- अकल लङे ओर अति दुख पावै
अकल तो एटम बम्ब बनाये- झटके मे संसार उङाये
भैंस दूध दे हमको पाले- बिना दूध हों चाय के लाले
अकल विभाजन देश का कीन्ही- पाक बांग्लादेश ये दीन्ही
भैंस अभी तक फर्क ना जाने- एक रूप में सबको माने
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई- भैंस सभी को दूध पिलायी
भैंस न कोइ इलैक्शन चाहे- भैंस ना कोइ सेलेक्शन चाहे
इसकी नज़र मे एक हैं सारे- मोटे पतले गोरे कारे
भेदभाव नहिं भैंस को भाया- भैंस मे ही जनतन्त्र समाया
भैंस ना कोई करै हवाला- भैंस करै ना कोइ घोटाला
पासपोर्ट ना वीजा पाती- जब चाहे विदेश हो आती
फिर भी स्मगलिंग ना करती- भैंस मेरी कानून से डरती
ता सौं भैंस हमें है प्यारी- मंगल भवन अमंगल हारी
अकल बेअकल जो मरै, अन्त सवारी भैंस
भैंस बङी है अकल से, फईनल हो गया केस !!
मे दुष्यंत कुमार जी का धन्यवाद करता हु, ओर माफ़ी चाहता हु उन की इजाजत के बिना उन की रचना प्रकाशित की हे,अगर उन्हे कोई एतराज हुआ तो इसे हटा देगे, धन्यवाद
maan gaye bhaiya bhains akal par bhari,aur aap to bhains par bhi bhari,ha ha ha ,aanand aa gaya.pranaam karta hun aapko
ReplyDeleteअब दुष्यंत कुमार जी तो आने से रहे, हाँ इस बहाने हम जैसे पिछडे हुए काव्य-प्रेमी भी उनकी उत्कृष्ट रचना से कृतार्थ हो गए.
ReplyDeleteआभार!
dushyant ji ka vyagyatmak rachna padhwane ke liye aabhar.
ReplyDeleteagar janam ke lihaj se dekhen to bhains ko paida hokar bachhde se bhains banane ka safar nishchit hi badaa hota hai. or akal ka kya aadmi ke bade hone tak kabhi kabhi kai logon ke paas ye nahi hoti.
ReplyDeletenishkarsh
bhains samay par badi ho jati hai jabki akal nahi is liye bhains badi kahlaayegi.
sahmat hain aapse
ReplyDeletebhains sada akal pe bhaari..... wah kya khoob
doodh pikar gyan lene walon per bhari hogi aur apki sharaabi post yahan bhi akal ko maat de jaayegi
vakai dhoondha hai
भाटिया जी इबकै आया सै असली मजा
ReplyDeleteथारै इस झोठी पुराण मै ! बहुत सुथरी
सै थारी झोठी ! प्रणाम झोठी माई को !
.
ReplyDeleteभाटिया जी,
मान गये आपके हास्यबोध को, एवं..
आपकी खोज को भी !
अनोखा व्यंग ।
आप ने दुष्यंत कुमार जी की कविता उन की इजाजत की बिना प्रकाशित की इस की लिए तो दुष्यंत जी की राय का हम इंतजार करेंगे पर आप को बधाई जो आप ने इतने बढ़िया रचना को प्रकाशित कर के हमे भेस और अक्ल की मध्ये अन्तर बता दिया
ReplyDeleteरोहतक याद आ रह्या सै.. भाटिया जी, न्यू लाग्गै..
ReplyDeleteआने का प्रोग्राम रच ल्यो...
तब तक मैं झोटा चालीसा लिखक मिलूंगा.
अंदेशा तो मुझे भी था। आपने भी देखा होगा कि अक्ल के पीछे लोग लठ्ठ लेकर फ़िरते हैं और भैंस के पीछे भी तो अल्जेब्रा के अनुसार अक्ल भैंस मे ही हुई न, इसलिए साफ़ होता है कि भैंस ही बड़ी हुई। चलिए देर से ही सही एक मुद्दा तो हल हुआ।
ReplyDeletekyaa baat hai..?
ReplyDeletebahut achha laga ,
ReplyDeletemaza aa gaya,aapke likhne ka style bahut dilchasp hai........
badiya hai sir ji ..accha laga ..
ReplyDeleteमान गये भैया आपको। दिल खुश कर दिया। हमारी चौपाल में तो इस केस का पहले ही फाइनल हो गया था। इसी लिए तो शहर-वहर और अखबारों का डेस्क-वेस्क छोड़-छाड़ कर चले आए गांव में गाय-भैंस चराने। अभी मेरा मन आपसे भोजपुरी में बात करने को कर रहा है, लेकिन क्या पता आप समझेंगे या नहीं।
ReplyDeletethat was a brilliant poem.........
ReplyDeleteआप सभी का धन्यवाद
ReplyDeleteमान गए भाटिया साहब, आप ने बता दिया कि कौन बड़ा है। लेकिन सबसे बड़े आप हैं।
ReplyDeleteभाई राज जी,
ReplyDeleteआदरणीय दुष्यंत जी की व्यंगात्मक रचना को क्षुधी पाठकों तक पहुँचने के लिए धन्यवाद.
अक्ल वाले तो अपने को दूसरों से बड़ा दिखाने के चक्कर में लड़ -लड़ कर गिरते ही रहेंगे, पर लट्ठ वाले , भैस वाले, चारे वाले, धंदे वाले, नेतागीरे वाले, चमचे सदा से राज करते आए हैं और राज ही करते रहेंगें.
पढ़ा-लिका चाकरी किया है और करता चला आ रहा है........................
चन्द्र मोहन गुप्त
दुष्यंत जी की कविता नहीं छापते आप तो मेरी अक्ल भैस से बड़ी ही होती,
ReplyDeleteधन्यवाद आपका सतर्क बना दिया कवि ने अक्ल को भैस से छोटी ।।
ha ha ha .... bhut chalisa padhi par bhais ki chlaisa pahali baar padh rhi hun. very nice.
ReplyDeleteआज पहली बार इसे ध्यान से पढ़ा, दुष्यंत जी को बधाई ! कि आपकी पारखी नज़रों ने इस कविता को सम्मान दिया, यह चालीसा मजाक में भी बहुत कुछ सिखाता है !
ReplyDeleteप्रिय मित्रों,
ReplyDeleteमहामूर्ख दरबार मे, फसा है फिर एक केस
बिन परमीशन घुस गई, भैस पराया देस
भैंस पराया देस घुसी, चरने को आई
पर पाकर सम्मान-प्रेम,फिरती इठलाई
पराया देश में अपनी रचना और उस पर आप सबके विचार पढकर बहुत अच्छा लगा|
मै आप सब का हृदय से आभारी हूँ कि आप सबने भैंस चालीसा को पढा और सराहा|
राज भाटिया जी को धन्यावद, जिन्होंने मेरी रचना ऐसे गुणी और पारखी पाठकों तक
पहुँचाई|
दुष्यन्त कुमार चतुर्वेदी
( http://dushyantkumarchaturvedi.blogspot.com/ )