14/08/08

दया

आज का विचार, हम मे से कितने लोग दया करते हे,हम थोडा पेसा मिलने पर,थोडी ऊंची पदवी मिलने पर ज्यादा से ज्यादा उस नशे मे खो जाते हे, ओर फ़िर अपने से छोटे को तु्च्छ समझ कर,कमजोर समझ कर,उस पर दया के वजाये कामो का बोझ डाल देते हे, जेसे हमारे घर मे काम करने वाले नोकर, कभी आप ने उस पर दया की हे,१५,२० घन्टे काम करता हे?अगर आप अधिकारी हे कभी आप ने अपने से नीचे वाले पर दया की हे?एक बार आप निस्वर्थ भाव से किसी पर दया कर के देखो..आज का चिंतन
दया का फल
अरब देश के सुबुक्तिन नाम का एक बादशाह था, युवावस्था मे वह एक बहादुर सिपाहई था, ओर उसे शिकार का बहुत शोक था,ओर जब भी मोका मिलता वह शिकार पर जरुर जाता, एक बार वह शिकार की खोज मे बहुत भटका लेकिन उस के हाथ कुच ना लगा, जब वह वापिस लोट रहा था तो उसकी नजर एक हिरनी पर पडी जो अपने बच्चे कॊ प्यार से चाट रही थी.


सुबुक्तिन ने सोचा खाली हाथ लोतने से अच्छा हे कुछ तो साथ ले चलू,ओर वह घोडे से निचे उतरा, आहट सुन कर हिरनी तो झट से भाग गई लेकिन हिरनी का बच्चा मां जितनी फ़ुरती ना दिखा पाया, ओर सुबुक्तिन के हाथ लग गया, सुबुक्तिन ने उसे बाधं कर घोडे की पीठ पर लाद दिय ओर चल पडा घर की ओर,

बहुत दुर जाने पर किसी आहट को सुन कर सुबुक्तिन ने पीछे मुड कर देखा तो वह हिरनी सुबुक्तिन के पीछॆ पीछे आ रही थी, ओर आंखो मे आंसु भरे थे, उदास सी, फ़िर खडी हो कर सुबुक्तिन को कातर नजरो से देखने लगी, जेसे ममता की भीख मांग रही हो,सुबुक्तिन को हिरनी की यह हालात देख कर दया आ गई, ओर उसने हिरनी के बच्चे को छोड दिया,बच्चा पा कर हिरनी बहुत खुश हुयी, ओर जाते जाते जेसे खामोश नजरो से सुबुक्तिन को धन्यवाद दे गई हो

उसी रात सुबुक्तिन को एक सपना आया उस ने देखा एक देवदुत कह रहा हे सुबुक्तिन तुने आज एक बहुत ही अच्छा काम किया हे, एक असहाय पशु पर दया करके, इस लिये खुदा ने तेरा नाम बादशाहो की सुची मे लिख दिया हे,तु एक दिन अवश्य बादशाह बने गा, ओर उसका सपना सच मे सच हो गया, एक दिन वह बादशाह बन गया.

हे तो यह एक कहानी ही, लेकिन इस से हमे शिक्षा मिलती हे की हमे कभी भी असहयो पर जुलम नही करना चहिये, चाहे वो मनुष्य हो या जानवार , जो लोग असहयो पर दया करते हे, मदद करते हे भगवान उन से हमेशा प्रसन्न होते हे.

17 comments:

  1. वाह राज भाई ! सत्यम शिवम् सुंदरम !
    इस तरह के द्रष्टान्त ब्लाग्स पर देखने को नहीं मिल रहे, आपका धन्यवाद !

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  2. बहुत ही प्रेरणा स्पद कहानी.. भाटिया साहब प्रयत्न करे की इस प्रकार की पोस्ट आपकी ब्लॉग पर मिलती है..

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  3. daya bhav jagane ka shukriya,achhi post

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  4. सुबह सुबह इस नायाब हीरे रूपी
    सीख भरी कहानी के लिए
    धन्यवाद !

    बस इसी तरह देते रहिये !

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  5. आपकी कहानी अच्छी लगी।

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  6. सुंदर प्रसंग. ऐसे ही ज्ञान बांटते रहिये.

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  7. दया के महत्व को दर्शाती उपयोगी एवं प्रेरक लोककथा पढने को मिली। आशा है आगे भी आप इसी प्रकार उपयोगी कहानियों के द्वारा प्रेरित करते रहेंगे।

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  8. प्रेरणादायक कहानी के लिये आभार.साथ ही स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामना भी स्वीकार करें

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  9. bahut achhi baat ki seekh bahut pyaari kahani ke saath di,
    bahut aasani se gahra mashwira diya

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  10. दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान!
    'तुलसी' दया न छोड़िये जब लग घट मैं प्रान!!

    बाबा 'टी डी गोस्वामी जी' का दोहा याद करा दिया आपकी इस दृष्टान्त कथा ने..

    महा आनन्दम..

    बधाई....

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  11. आभार इन सदविचारों के लिये.

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  12. प्रेणादायक कहानी है ...

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  13. आप को आज़ादी की शुभकामनाएं ...

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  14. राज भाटिया जी,
    सच कहा आपने, की हम में से अधिकांश लोग अहम् के नशे में खो कर दया-धर्म कों भूल बैठते है.
    ऐसे लोगों का नशा उसी दिन चूर होता है जिस दिन इश्वर उन्हें किसी बड़ी ठोकर से दो चार करता है.
    सद-विचार कों कहानी के माध्यम से हम पाठकों तक पहुचने का धन्यवाद.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  15. आप सभी का धन्यवाद

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नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये