आज का विचार, कहते हे अच्छी बात अगर दुशमन से भी सीख मे मिले तो ले लेनी चहिये,
चिंतन...
बात बहुत पुरानी हे, जब भारत मे गोरो का राज्या था, उस समय ड्रा सर विलियम जोन कलकता हाई कोर्ट के जज नियुक्त हो कर नये नये आये,वह एक लेखक भी थे, ओर उन्हे दुनिया की १८,भाषाये आती थी,जब वो भारत मे आये तो उन्हे संस्कृत सीखने की धुन सवार हुई,लेकिन उन्हे कोई भी संस्कृत पढाने के लिये तेयार नही था,फ़िर संस्कृत दुनिया की सब से मुस्किल भाषा भी हे,तभी विलियम को एक दिन एक गुरु संस्कृत पढाने को तेयार हुये लेकिन उन की शर्त बहुत ही अजीब थी, इन गुरू की १ महीने की फ़ीस १०० रुपये ( उन दिनो सो रुपये बहुत होते थे ),जब तक पढाई चले तब तक मांस मादिरा बन्द,पढाई सुबहा ५,०० बजे शुरु होगी, पढाई से पहले स्नान करना जरुरी हे,ओर जिस कमरे मे संस्कृत की पढाई होगी उस को को गगां जल से पबित्र किया जाना चहिये, ओर यह सब शर्ते सर विलियम को मंजुर थी,
ओर उन हो ने एक साल मे अपनी शिक्षा पुरी कर ली.ओर अच्छी संस्कृत मे दक्ष हो गये, ओर उन्होने काली दास के शाकुंतला का अनुवाद अग्रेजी मे किया, जिस ने सारे युरोप मे नाम कमाया,ओर दुनिया कालिदास को भारत का शेक्स्पियार कहने लगे, जब लोगो ने विलियम से पुछा आप ने संस्कृत को एक साल मे केसे पुरा पढ लिया, तो सर विलियम ने कहा अपनी लगन ओर मेहनत से, मेरे दिल मे लगन थी, ओर उस लगन के कारण मेने अपने गुरु की सभी शर्ते मानी,
ओर उन्होने का अत्मसुधार का कोई भी मोका हाथ से नही जाने देना चहिये,बल्कि लगन ओर मेहनत से उसे ओर भी सवांरना चहिये.
bahut utsahvardhak kahani,lagan se sab kuch mumkin hai.
ReplyDeleteसही कहा, लगन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
ReplyDeleteguru kripaa kaa sateek udaaharan hai bhatiyaa saahab
ReplyDeleteये तो एक साल मे ही संस्कुत शीख गए पर मै तो चार साल मे भी नही सीख पाया।
ReplyDeleteकहानीयां ऎसे ही लीखते रहीये पढ्ने मे बहुत मजा आता है। आपकी कहानीया पढ्ते पढते मै उसी मे खो जाता हुं
आप सभी का अति आभारी हुं, आते रहे, ओर मान बाढाते रहे .धन्यवाद
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