आज का विचार,अगर पंसद आये तो जरुर बतलाये..
अमेरिका की बात हे बात तब की हे जब अमेरिका मे इब्राहम लिंकन अभी राष्ट्पति नही बने थे,
एक सीधे साधे ओर शरीफ़ आदमी कॊ कुछ गलत लोगो ने एक हत्या के मामले मे फ़सां दिया,ओर उस व्यक्ति के पास कोई ऎसा सबुत भी नही था की वो अपने आप को वेकसुर साबित कर सके, ओर उस के पिता की भी मृत्यु हो चुकी थी,ओर उस की मां के पास इतना पेसा भी नही था,कि कोई अच्छा वकील भी कर सके,बस अपने ईश्बर से ही प्राथना कर सकती थी,ओर उसे बेटे के भाग्य पर छोड दिया था,ओर लोगो को पक्का यकिन था की सारे सबुत के तोर पर इस आदमी कॊ फ़ांसी की सजा पक्की हे,
तभी इस केस के बारे मे एक अखबार मे खबर छपी ओर उस खबर को इब्राहम लिंकन ने भी पढा,उस समय इब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट पति नही बने थे,वल्कि वकालत करते थे,ओर उन्होने वह केस उस व्याक्ति के हक मे लडना चाहा,ओर उन्हे यह केस मिल भी गया,उन्हे जब इस केस की फ़ाईल मिली ओर उन्होने देखा कहीं भी दम नही केस मे दुसरी पार्टी ने बहुत अच्छे साबुत पेश किये हे,अगली पेशी मे लिंकन ने गवाहॊ से कुछ सवाल किये ओर उन्हे बिचलित करना असम्भव था, यहा तक के एक गवाह ने तो साफ़ शब्दो मे कहा की उस ने चांदनी रात मे अपनी आंखॊ से देखा हे कत्ल होते,ओर मे बहुत दुर भी नही था,अगली सुनवाई मे अब सजा सुनाई जानी बाकी थी,
लेकिन लिंकन ने हिम्मत नही हारी,ओर पता नही क्यो घर जा कर वो पांचाग मे काफ़ी रुचि ली, ओर बहुत सी किताबे पढी, ओर पुरानी अखवार खरीद लाये, ओर आखरी सुनवाई मे एक ऎसा सबुत दिया की सभी गवाह झुठे साबित हुये,ओर वह आदमी वा इज्जत बरी हुया,जिस गवाह ने कहा की उस ने चादंनी रात मे रात ९,०० बजे इस कॊ कत्ल करते देखा था,यह व्यान एक नही कई बार उस गवाह ने दिया था, ओर आखरी दिन भी जब उस ने यह बात दोहराई तो लिंकन ने जज से कहा उस दिन चांद रात कॊ १२,३० पर निकला था तो इस आदमी ने ९,३० पर केसे देख लिया?
जब लिंकन केस जीत कर बाहर आये तो उस की मां ने लिंकन के पावं पकड लिये तभी लिंकन ने उस से दोनो हाथो से उठाया ओर बोले मां यह कया कर रही हो,आप तो मेरी मां समान हे, शायाद आप ने मुझे पहचाना नही, मे बहुत समय पहले आप के घर पर नोकरी करता था, मे एक मामुली नोकर था, लेकिन आप ने मुझे कभी भी नोकर नही समझा था, ओर यह आम्स्ट्राग (जिसे बचाया) को तो मेने अपनी गोद मे खिलाया हे, बचपन मे जो उपकार,जो प्यार, जो अपनापन मुझे दिया उस का बदला तो मे कभी भी नही चुका सकता.
जियो, भाटिया साब, जियो....यह असली किस्सा सुन कर मैं तो इतना भाव-विभोर हो गया हूं कि कुछ भी लिखने के लिये मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। बस एक बात याद आ रही है कि ...कर भला सो हो भला, अंत भले का भला।
ReplyDeletebahut hi badhiya kahani hai,be nice to all,u will get nice things from world.bahut achhi baat kahi.
ReplyDeleteब्लॉग्स पर ऐसे किससे कम ही मिलते है.. आपको पढ़कर खुशी हुई..
ReplyDeleteबड़ा ही रोचक किस्सा परोसा है. अब उअह सब ढ़ूंढ़ कर या प्रयास कर ही पढ़ने मिल पाता है. आभार..और सुनवाईये ऐसे किस्से.
ReplyDeleteउल्लेखनीय उदाहरण झूठे प्रकरणों को झूठा साबित करने के लिए यह युक्ति बहुत काम आती है। और तब वकील का इधर-उधर का ज्ञान बहुत काम आता है। कोई तो सबूत मिल ही जाता है।
ReplyDeleteसही तो यह है कि घृणित से घृणित अपराध के अभियुक्त को भी उस की पसंद का वकील मिलना चाहिए। चाहे वह उस की फीस दे सकता हो अथवा नहीं। अन्यथा सक्षम व्यक्ति हमेशा न्याय का गला घोंटते रहेंगे। मगर इस की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। हो भी तो कैसे अभी तो पर्याप्त अदालतों की भी व्यवस्था नहीं है।
लींकन तो बहुत चतुर नीकलें।
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी है और पढ्ने मे बडा मजा आया।
Raj ji,
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आप सभी का बहुत बहुत आभार, मेरा होसला बढाने के लिये,आप सब का साथ बना रहे, धन्यवाद
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