क्रमश...
बचनु न आव नयन भरे बारी,
अहह नाथ हॊं निपट बिसारी.
इसके बाद हनुमानजी ने जब श्रीराम का प्रेम सन्देश सुनाते हुये यह कहा कि माता ! श्रीराम क प्रेम तुम से दुगुना हे, उन्होंने कहल्वाया हॆ.
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा.
जानत प्रिया एकु मनु मोरा.
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं,
जानु प्रीति रसु एत्नेहि माहीं.
यह सुन कर सीता बहुत खुश हो जाती हे,श्री सीता राम का परस्पर कॆसा आदर्श प्रेम हॆ.जगत के स्त्री-पुरुष यदि इस प्रेम को आदर्श बना कर परस्पर ऎसा ही प्रेम करने लगें तो गृहस्थ सुखमय बन जाय.
पर पुरुष से परहेज..
सीता जी ने जयन्त की घटना याद दिलाते हुये कहा हे कपिवर !तु ही बता, मे इस अवस्था मे केसे जी सकती हुं ? शत्रु को तपाने वाले श्रीराम-लक्ष्मण समर्थ होने पर भी मेरी सुधि नही लेते, इससे मालूम होता हे अभी मेरा दु:खभोग शेष नहीं हुया हॆ. यो कहते कहते जब सीता के नेत्रो से आसुंयों की धारा बहने लगी तब हनुमान ने उन्हे आश्र्वासन देते हुये कहा कि माता ! कुछ धीरज रखो, शत्रुयओ के संहार करने वाले कृतात्मा श्रीराम ओर लक्ष्मण थोडे ही समय मे यहां आ कर रावण का वधकर तुम्हे अवध्पुरी ले जाये गे,तुम चिन्ता ना करो,यदि तुम्हारी बिशेष इच्छा हो ओर मुझे आज्ञा दो तो मॆ भगवान श्रीराम की ओर तुम्हारी दया से रावण का वध कर ओर लकां को नष्ट कर तुमको प्रभू श्रीराम चन्दर के समीप ले जा सकता हुं, अथवा हे देवी !तुम मेरी पीठ पर बेठ जाओ, मॆ आकाश मार्ग से हो कर महासागर को लाघं जाऊंगा.यहां के राक्षस मुझे पकड नहीं सकेगे, मे शीघ्र ही तुम्हे प्रभु श्रीरामचन्द्र जी के पास ले जाउगा;हनुमान के वचन सुन कर उनके बल-पराक्रम की परीक्षा लेने के बाद सीता कहने लगी हे वानर श्रेष्ट ,पतिभक्त्ति का सम्यकू पालन करने वाली मे अपने स्वामी श्रीरामचन्द्र को छोड कर स्वेच्छा से किसी भी अन्य पुरुष के अंग का स्पर्श करना नही चाहती
भर्तुभर्क्ति पुरस्कृत्य रामादन्यस्य वानर,
नाहं स्प्रष्टंउ स्व्तो गात्र्मिच्छेयं वानरोत्तम.
वा० रा ० ५/३७/६२
क्रमश...
मै अभी 1घंटे पहले आया था तो यह पोस्ट "चिंतन क्रोधाग्नि" और अभी देखा तो एक ही बार २-३ पोस्ट उप्पर यह पोस्ट दीखा "माता सीता जी से एक शिछा १"
ReplyDeleteयह तो अनोखा है मै तो बीलकुल साट-सर्कीट हो गया हूं।
राम-कथा (सीता मां समाहित) वह विषय है जिसपर जो भी लिखें - प्रेरक हो जाता है। लिखते रहें।
ReplyDeleteआप का बहुत बहुत धन्यवाद.
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