क्रमश से आगे....
सास सेवा
सीता पति सेवा के लिये वन गयी परन्तु उसको इस बात का बडा क्षोभ रहा कि सासुओं की सेवा से उसे अलग होना पड रहा हे,सीता सास के पॆर छु कर सच्चे मन से रोती हूई कहती हे...
सुनिअ माय मॆ परम अभागी,
सेवा समय दॆयं बनु दीन्हा.
मोर मनोरथु सफ़ल न कीन्हा,
तजब छोभु जनि छाडिअ छोहू
करमु कठिन कछु दोस न मोहू.
सास पतोहू का यह व्यवहार आदर्श हे, भारतीय ळळनाएं यदि आज कोसल्या ओर सीता का सा व्यवहार करना सीख जायं तो भारतीय गृहस्थ सब प्रकार से सुखी हो जाये,
सास अपनी वधुओ कॊ सुखी देखने के लिये व्याकुल रहें ओर बहूऎ सास की सेवा के लिये छटपटावें तो दोनो ऒर का सुख का साम्रज्य स्थापित हो सकता हे
**सहिष्णुता**
सीता जी की सहिष्णुता क एक उदाहरण देखिये, वन गमन के समय जब कॆकेयी सीता को वनवास के योग्य वस्त्र पहनने के लिये कहती हॆ तब वसिष्ट सरीखे महर्षिका मन भी क्षुब्ध हो उठता हे, परन्तु सीता इस कथन को केवल चुपचाप सुन ही नही लेती , आज्ञानुसार वह वस्त्र धारण भी कर लेती हे, इस प्रसगं से भी यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये कि सास या उसके समान नाते मे अपने से बडे जो भी कुछ कहे उसे खुशी के साथ सहन कर लेना चहिये,ऒर पति के साथ कभी विदेश जाना पडे तो सासु र ससुर को प्रणाम कर उन्हे सन्तोष करवा कर सेवा से वन्चितं होने के लिये हार्दिक पक्ष्चताप करते हुये जाना चाहिये इस से वधुओं कॊ सास ससुर का आशीर्वाद आप ही प्राप्त हो जाता हे.
निरभिमानता
सीता पतिव्रता थी,उसे कोई पतिव्रता का उपदेश कया देता,परन्तु सीता कॊ अपने पतिव्रत्य का कोई अभिमान नहीं था, अनुसूयाजी के दुवारकिया हुया पतिव्रत्य धर्म क उपदेश सीता बडे आदर के साथ सुनती हॆ ओर उन के चरणो मे प्रणाम करती हे,उस के मन मे यह भाव नहीं आता कि मे सब कुछ जानती हु,बल्कि अनसुया जी ही उस से कहती हे..
सुनु सीता तव नाम सुमिरि नारि पतिब्रत करहिं,
तेहि प्रानप्रिय राम कहिऊं कथा संसार हित.
इस् से यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये कि अपने से बडे-बूढे जो कुछ उपदेश दें उसे अभिमान छोडकर आदर ऒर सम्मान के साथ सुनना चहिये,एवं यथासाध्य उसके अनुसार चलना चहिये,
क्रमश...
बढीया कहानी है!!
ReplyDeleteपर माता सीता जी से तो बहुत से सीछा ले सकते हैं फीर एक से क्या काम चलेगा।
अब कमेंट मे भी कलाकारे करुं क्या। एक कलाकारी कर ही देता हुं
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(@ @) बंदर की सक्ल बना दीया, मैं ही हू
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ReplyDelete(@ @)
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ओह ईसका मुह आगे जा ही नही रहा है दो बार प्रयास कर चुका हुं
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