06/04/08

माता सीता जी से एक शिक्षा

हमारे यहां हिन्दी भाषा बोलने वाला नही मिलता तो, हिन्दी की किताबे कहां से मिलेगी,लेकिन जब भी भारत आता हु तो पिता जी कोई ना कोई अच्छी किताब देदेते हे,ओर जब भी मुझे थोडा बहुत समय मिलता हे तो वो किताबे मे पढ लेता हु, कल एक किताब मे ऎसा ही कुछ पढा, मन हुया यह विचार आप से भी बाटं लु, यह लेख माता सीता जी के जीवन से हे ओर स्त्री के रुप मे सीता के चरित्र से एक आदर्श शिक्षा हे..
यह कहना गलत नही होगा की पुरी दुनिया के स्त्री चरित्रो मे रामप्रिया जगजन्नी जानकी जी का चरित्र सबसे उत्तम हे,रामायण के सभी स्त्री-चरित्रो मे तो सीता जी का चरित्र सव्रोत्तम,सवर्था आदर्श ओर पद पद पर अनुकरण करने योग्य हे,भारत-ललनाओ के लिये सीता जी का चरित्र सन्मार्ग पर चलने के लियेपूर्ण मार्ग दर्शन हे,सीता जी के असाधारण पतिव्रत्य,त्याग,शील,अभय,शान्ति,क्षमा,सहनशीलता,धर्मपरायण्ता, नम्रता,सेवा,संयम,सद्व्यवहार,साहस,शोर्या आदि गुण एक साथ जगत की विरली महिलाओ मे मिल सकते हे,सीता जी के पवित्र जीवन ओर अप्रतिम पतिव्रत्यध्र्म के सद्र्श उदाहरण रामायण तो कया जगत के किसी भी अन्य पुस्तक मे मिलने कठिन हे,आरम्भ से ले कर अन्त तक सीता जी के जीवन की सभी बाते ( केवल एक प्रसंग को छोड कर) पवित्र ओर आदर्श हे.ऎसी कोई बात नही जिस से हमारी मां बहन को सत शिक्षा न मिले,संसार मे अब तक जितनी भी स्त्री हो चुकी हे,उन मे सीता जी को पातिव्रत्य्धर्म मे सर्वशिरोमिण कहा जाता हे.किसी भी ऊची से ऊची स्त्री के चरित्र की सूक्ष्म आलोचना करने से ऎसी एक न एक बात मिल ही सकती हे जो अनुकरण के योग्य ना हो,परन्तु सीता जी का ऎसा कोई भी आचरण नही मिलता.
जिस एक प्रंसग को सीता के जीवन मे दोष युक्त समझा जाता हे वह हे माया म्रग को पकडने के लिये श्रीराम के चले जाने ओर मारीच के मरते समय हा सीते ! हा लक्ष्मण ! की पुकार करने पर सीता का घबडाकर लक्ष्मण के प्रति यह कहना कि "मे समझती हुं की तू मुझे पाने के लिये अपने बडे भाई की मृत्यृ देखना चाहता हे.मेरे लोभ मे तु भाई की रक्षा करने नही जाता,इस बार्तव के लिये सीता ने आगे जा कर बहुत पश्रअताप किया.साधारण स्त्री-चरित्र मे सीता जी का यह बर्ताव कोई विशेष दोषयुक्त नही हे,स्वामी को संकट मे पडे देख कर आतुरता ओर प्रेम की बाहुल्तया से सीता जी यहां पर नीति का उल्लंघन कर गयी थी.श्रीराम-सीता जी का अवतार मर्यादा की रक्षा के लिये था, इसी से सीता जी की यह एक गलती सम्झी गयी ओर इसीलिये सीता जी ने पक्ष्श्रताप किया था.
क्रमश...

5 comments:

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  2. आपने सीता जी के चरित्र के ऊपर बहुत सुंदर चित्रण किया है जिसके लिए आभार व्यक्त करता हू .. समयचक्र ब्लॉग मे आपका आगमन होता रहता है कृपया यमराज को भी आप अपना समझिए .

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  3. बहुत बढिया लिखा है आपने..
    मेरे चेन पोस्टिंग का मैंने दो और अंक लिख डाला है मगर आपकी कोई टिप्पणी नहीं आयी, सोचा शायद आपको पता ना चला हो.. सो आपको मैं अपने चिट्ठे पर आने का न्योता देने चला आया.. :)

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  4. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद, मेरा होसला बढाने का, अनाम भाई आप मुहं छुपा कर दुसरो का माल मेरे दरवाजे पर क्यो छोड गये,चोरो की तरह से मत आओ,सामने से आओ, हम तो साधु स्भाव के हे.

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