क्रमश से आगे...
वन के नाना क्लेशों ओर कुटुम्ब के साथ रहने के नाना प्रलोभनों को सुन कर भी सीता अपने निश्चक्ष्य पर अडिग रहती हे,वह प्ति-सेवा के सामने सब कुछ तुच्छ समझती हे.
नाथ सकल सुख साथ तुम्हारे,सरद बिमल बिधु बदनु निहारे.
यहां पर यह सिद्ध होता हॆ कि सीता जी ने एक बार प्राप्त हुई पति-आज्ञा को बदला कर दुसरी बार अपने मनोनुकूल आज्ञा प्राप्त करने के लिये प्रेमाग्रह किया,यहां तक कि जब भगवान श्रीराम किसी प्रकार भी नहीं माने तो हदय विदीर्ण हो जाने तक का सकेत कर दिया.
ऎसेउ बचन कठोर सुनि जॊ न हदय बिलगान,
तॊ प्रभु बिषम बियोग दुख सहिह्हिं पावंर प्रान.
अध्यात्मरामायण के अनुसार तो श्री सीता जी ने यहां तक स्पष्ट कह दिया कि....
रामायणानि बहुश: श्रुतानि बहुभिर्द्विजॆ,
सीतां विना वनं रामो गत: किं कुत्रचिद्वद.
अतस्त्वया गमिष्यामि सर्वथा त्वत्सहायिनी.
यदि गच्छसि मां त्यक्त्वा प्राणांस्त्यक्ष्यामि.
मॆने भी ब्राह्मणो के दुआरा रामायण की अनेक कथाएं सुनी हे, कहीं भी ऎसा कहा गया हो तो बतलाइये कि किसी रामावतार मे श्रीराम सीता कॊ अयोध्या मे छोड कर वन गये हे.इस बार यह नयी बात क्यो होती हे? मॆ आप की सेविका बन कर साथ चलुगी, यदि किसी भी प्रकार आप मुझे साथ वन मे नही ले जाओ गे तो मेआप के सामने प्राण त्याग दुगी.पति सेवा की भावना से सीता ने स्पष्ट रुप से अवतार विषयक अपनी बडंआई के शब्द भी कह डाले.
बाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता जी के अनेक रोने,गिडगिडाने,विविध प्रार्थना करने ओर प्राणत्याग पूर्वक परलोक मे पुन: मिलन होने का निश्च्च्य बतलाने पर भी जब श्रीराम उन्हे साथ ले जाने को राजी नही हुये तब उअन्को बडा दुख हुया ऒर वे प्रेमकोप मे आंखो से गर्म गर्म आंसुओ की धारा बहाती हुई नीति के नाते इस प्रकार कुछ कठोर वचन भी कह गयी कि- हे देव ! आप सरीखे आर्य पुरुष मुझ जेसी अनुरक्त, भक्त,दीन ओर सुख दुख को समान समझने वाली सहधर्मिणी को अकेली छोड कर जाने का विचार करें यह आप को शोभा नही देता,मेरे पिता जी ने आपको पराक्रमी ओर मेरी रक्षा करने मे समर्थ समझ कर ही अपना दामाद बनाया था,इस कथन से यह सिद्ध होता हे कि श्रीराम लडकपन से अत्यन्त श्रेष्ठ पराक्र्मी समझे जाते थे,इस प्रषंग से मे श्री वाक्मीकिजी ओर गोस्वामी तुलसी दास जी ने सीता- राम के संवाद मे जो कुछ कहा हे सो सभी स्त्रि- पुरुष के ध्यान पूवक पढने ओर मनन करने योग्या हे.
क्रमश..
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