क्रमश से आगे....
अग्नि परीक्षा
रावण का वध हो गया, प्रभु श्रीराम जी की आज्ञा से सीता को स्नान करवा कर ओर वस्राभूषण पहना कर विभीषण श्रीराम के पास लाते हे,बहुत दिनो के बाद प्रिय पति श्रीराम श्रीरघुवीर के पूर्णिमा के चन्द्र्सदृश मुख को देख कर सीता का सारा दुख नाश हो गया ओर उस का मुख निर्मल चन्द्रमा की भातिं चमक उठा, परन्तु श्रीराम ने यह स्पष्ट कह दिया - मेने अपने कर्तव्या का पालन किया, रावण का वध कर तुझ को दुष्ट के चुंगल से छुडाया, परन्तु तू रावण के घर मे रह चुकी हे, रावण ने तुझे बुरी नजर से देखा हे, अतएव अब मुझे तेरी आवश्यकता नहीं, तू अपने इच्छानुसार चाहे जहां चली जा , मे तुझे ग्रहण नहीं कर सकता.
नास्ति में त्वय्यभिष्वड्गों यथेष्टं गम्यतामिति.
(वा० रा० ६/११५/२१ )
श्रीराम के इन अश्रुतपूर्व कठोर ओर भयंकर वचनॊं को सुन कर दिव्य सती सीता की जो दशा हुई उसका वर्णन नही हो सकता, स्वामी के वचन-बाणो से सीता के समस्त अगों मे भीषण घाव हो गये,वह फ़ूट फ़ूट कर रोने लगी, फ़िर करुणा को भी करुण सागर मे डुबो देने वाले शव्दो मे उसने धीरे धीरे गदद बाणी से कहा.....
‘ हे स्वामी ! आप साधारण मनुष्यों की भातिं मुझे क्यो ऎसे कठोर ओर अनुचित शव्द कहते हे, मे अपने शील की शपथ कर क्र कहती हूं कि आप मुझ पर विश्रवास रखें, हे प्राणनाथ ! रावण हरण करने के समय जब मेरे शरीर क स्पर्श किया था, तब मे परवश थी,इस्मे तो देव का ही दोष हे,यदि आप को यही करना था , तो हनुमान को जब मेरे पास भेजा था तभी मेरा त्याग कर दिये होते तो अबतक मे अपने प्राण ही छोड देती,! श्री सीता जी ने बहुत सी बाते कही, परन्तु श्रीराम ने कोईजबाव नही दिया, तब वे दीनता ओर चिन्ता से भरे हुये लक्षमण से बोली- हे सॊ मित्रे ! ऎसे मिथ्यापवाद से कल्कितं होकर जीना नही चाहती, मेरे दुख की निवृति ब्के लिये तुम यहीं अग्रि-चिता तेयार कर दो , मेरे प्रिया पत ने मेरे गुणो से अप्रसन्न हो कर जनसमुह के मध्यम मेरा त्याग किय हे, अब मे अग्रिअप्रवेश करके इस जीवन का अन्त करना चाहाती हुं, वॆदेही सीता के वचन सुनकर लक्षमण ने कोप भरी लाल- लाल आखंओ से एक बार श्री राम चन्द्र की ओर देखा, परन्तु राम की रुचि के अधीन रहने वाले लक्षमण ने आकार ओर सकेंत से श्री राम की रुख समझ कर उनके इच्छानुसार चिंता तेयार कर दी, सीता ने प्रज्वलित अग्रि के पास जा कर देवता ओर ब्राहमणो को प्रणाम कर दोनो हाथ जोड कर कहा..
क्रमश....
बड़ा करुण प्रसंग है, और सामान्य सोच के परे भी।
ReplyDeleteआगे जारी रहें..
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