बच्चो आओ आज एक बहुत ही सुन्दर कहानी सुनो, ओए इस से कुछ सीख भी लेना.
मुर्ख गधा
अर्जुन पुर गांव मे एक कुम्हार रहता था,वो कुम्हार रोजाना अपने गधे पर मिट्टी के पक्के बर्तन ले कर शहर मे बेचने जाता था, रास्ते मे एक महल भी पडता था,गधे ने कई बार कुम्हार को महल के बारे बाते करते सुना था,ओर अब गधा भी मन ही मन सोचता काश मे राजा का गधा होता तो कितना अच्छा होता,बर्तनो की जगह मेरे ऊपर हीरे, ओर मोती लादे जाते,जुन का महीना था उस दिन गर्मी भी बहुत थी,सुरज भी चमक रहा था,चलते चलते दोपहर होगई जिस से गधे का बुरा हाल था, एक तो इतनी गर्मी,उपर से बर्तनो का बोझ, पर करे भी तो कया करे, बस मन ही मन सोचने लगा, मेरी जिन्दगी भी कितनी बेकार हे,सारा दिन बस बर्तन ढोने के सिवा कोई ओर काम नही, तभी अचानक गधे कॊ कोयल की आवाज सुनाई दी कूउउ कूउउउ, गधे ने देखा, ओर सोचने लगा कोयल कितनी भाग्यशाली हे, कभी इस पेड पर कभी उस पेड पर आजाद घुमती ओर उडती हे,अपनी अपनी किस्मत,अब कुम्हार अपनी मजिल पर पहुच गया तो उस ने बर्तन उतार कर गधे को एक खुले मेदान मे छोड दिया, ताकि वो थोडी बहुत घास चर ले,
अभी गधा बेमन से घास चरने ही लगा था, की उसे आवाज आई,बचाओ बचाओ, कोई मेरी मदद करो, बचाओ....गधे ने इधर उधर देखा, उसे कोई भी दिखाई नही दिया, तभी गधे की नजर नीचे एक गढे मे गई, तो देखा वहां एक जख्मी तोता पडा हे,नजरे मिलते ही तोते ने कहां गधे महाराज मुझे बचालो, मे रानी का तोता हू, कुछ तोतो के कहने से मे महल से भाग कर उन के साथ यहां आया,तो उन् तोतो ने मुझे चॊंचे मार मार कर मेरा यह हाल कर दिया, अब अगर तुमने मेरी मदद नही की तो कोई कुत्ता या बिल्ली मुझे खा जाये गे,तुम्हारा बहुत उपकार होगा, ओर मे जिन्दगी भर तुम्हारा उपकार नही भुलु गा, मुझे यहां से निकाल के महल मे पहुचा दो,गधे ने ध्यान से देखा तोते के सारे पर टुट गये थे, ओर खुन भी निकल रहा था,फ़िर एक सुनहरी मोका भी मिल रहा था महल मे जाने का, सो गधे ने तोते को अपने उपर बिठा लिया ओर चल पडा महल की ओर,लेकिन पीठ से तोता बार बार फ़िसल जाता था, फ़िर तोते ने उसे अपने कान मे बिठा लिया, ओर महल के दरवाजे मे जा कर गधा जोर जोर से बोला भाई दरवाजा खोलो,लेकिन वहां आदमी तो गधे की ढेचू ढेचू को नही समझते थे, फ़िर कया गधे को मार मर कर वहां से भगा दिया,गधा बहुत उदास हुया,
तभी तोता बोला गधे जी इस बार आप मत बोलना बस सर हिलाना, चलो एक बार मेरे लिये चलॊ, गधे को तो जरुर महल देखना था, सो फ़िर गया महल के दरवाजे पर ओर पेर से दरवाजा खटखटाया, तभी सिपाही ने गधे को देखा, ओर फ़िर से मारने लगा तो कान मे बेठा तोता बोला भाई ठहरो मुझे राजा से मिलना हे,सिपाही ने पहली बार एक गधे को बोलते देखा ( सिपाही ने सोचा गधा बोल रहा हे )तो बहुत हेरान परेशान, उस ने राजा को खबर पहुचाई, ओर तुरन्त गधे को राजा के पास लाया गया, राजा के पास जा कर गधा झुका तो कान मे बेठा तोता बोला महाराज प्रणाम,मुझे कोई काम दे दे,राजा रानी बहुत हेरान हुये एक बोलते गधे को देख कर,उस दिन राजा रानी ने बहुत बाते की गधे से, फ़िर शाम कॊ गधे को बहुत ही सुन्दर खाना मिला,हरी मुलायम घास साफ़ सुथारा पानी,गधे ने तो कभी इतना खाया भी नही था जितना आज का गया, ओर सोने के लिये बहुत ही सुन्दर स्थान ओर इतनी गरमी मे भी ठण्डा, सुबह सुबह तोता बोला भाई आज मुझे रानी के पास जाने दो,तो गधा बोला २,३ दिन मुझे ओर रहने दो फ़िर मेरा दिल भी भर जाये गा महल से तब तुम चले जाना, तोता बोला ठीक हे, दो दिन यु ही बीत गये,आज तीसरा दिन था,राजा मे अपने दोस्त राजाओ को बोलने बाला गधा दिखाने के बाहने बुलाया था, दरवार सजा हुया था,सभी लोगो ने गधे से कई सवाल पुछे, ओर कान मे बेठा तोता उन के जबाब दे देता, सभी सोचते गधा बोल रहा हे,आज राजा भी बहुत खुश था, ओर गधा तो फ़ुला ना समा रहा था, तभी किसी ने कहा कया गधा गीत भी गा सकता हे,यह बात सुनते ही गधे को जॊश आ गया, तोता रोकता ही रह गया, ओर गधा अपनी मिठ्ठी आवाज मे रेंगने लगा ढे....चू ढे...चू इतनी जोर से गाया की तोता भी उस के कान्से गिर गया,ओर दरवारियो ने राजओ ने अपने अपने कान बन्द कर लिये, ओर गधा अपनी मस्ती गाता रहा,अब अक सब लोगो को पता चल गया कया माजरा हे . फ़िर उस गधे को मार मार कर महल से बहिर किया. बेचारा गधा,
बेहतरीन लगी आपका ब्लाग, कल आपके बारे श्रीराम चन्द्र मिश्र जी के साथ चर्चा हुई।
ReplyDeleteआपने मेरे व्यंगात्मक पोस्ट पर टिप्प्णी की अच्छा लगा, अभी भौजाई आने में काफी समय है करीब 8 साल से ज्यादा। तब तक भारत यात्रा का कार्यक्रम बना लीजिऐ।
बहुत बढ़िया कहानी
ReplyDeleteदीपक भारत दीप
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद,प्रमेन्दर जी जरुर आये गे भारत कभी, फ़िर आप सब से भी मिले गे
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी। सही बात है हकीकत कब तक छुप सकती है। एक ना एक दिन वह सामने आ ही जाती है। सो अपनी पहचान पर ही कोइ काम करे। बहुत अच्छी कहानी। आप देश से बाहर रहकर भी अपनी मिटृटी से जुडे हैं इसके लिए आपको बधाई।
ReplyDeleteबहुत खूब..सत्य कभी नहीं छुपता
ReplyDeleteभाटियाजी, नमस्कार ।
ReplyDeleteसुंदर, उपदेशात्मक कहानी।
आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप, लिखते रहें।