15/02/08

मंदिर और मस्जिद भाग १

लिजियॆ एक ओर रचना मूंशी प्रेमचन्द जी की...
मंदिर ओर मस्जिद
चौधरी इतरतअली ‘कड़े’ के बड़े जागीरदार थे। उनके बुजुर्गो ने शाही जमाने में अंग्रेजी सरकार की बड़ी-बड़ी खिदमत की थीं। उनके बदले में यह जागीर मिली थी। अपने सुप्रबन्धन से उन्होंने अपनी मिल्कियत और भी बढ़ा ली थी और अब इस इलाके में उनसे ज्यादा धनी-मानी कोई आदमी न था। अंग्रेज हुक्काम जब इलाके में दौरा करने जाते तो चौधरी साहब की मिजाजपुर्सी के लिए जरूर आते थे। मगर चौधरी साहब खुद किसी हाकिम को सलाम करने न जाते, चाहे वह कमिश्नर ही क्यों न हो। उन्होंने कचहरियों में न जाने का व्रत-सा कर लिया था। किसी इजलास-दरबार में भी न जाते थे। किसी हाकिम के सामने हाथ बांधकर खड़ा होना और उसकी हर एक बात पर ‘जी हुजूर’ करना अपनी शान के खिलाफ समझते थे। वह यथासाध्य किसी मामले-मुक़दमे में न पड़ते थे, चाहे अपना नुकसान ही क्यों न होता हो। यह काम सोलहों आने मुख्तारों के हाथ में था, वे एक के सौ करें या सौ के एक। फारसी और अरबी के आलिम थे, शरा के बड़े पाबंद, सूद को हराम समझते, पांचों वक्त की नमाज अदा करते, तीसों रोजे रखते और नित्य कुरान की तलावत (पाठ) करते थे। मगर धार्मिक संकीर्णता कहीं छू तक नहीं गयी थी। प्रात:काल गंगा-स्नान करना उनका नित्य का नियम था। पानी बरसे, पाला पड़े, पर पांच बजे वह कोस-भर चलकर गंगा तट पर अवश्य पहुंच जाते। लौटते वक्त अपनी चांदी की सुराही गंगाजल से भर लेत और हमेशा गंगाजी पीते। गंगाजी के सिवा वह और कोई पानी पीते ही न थे। शायद कोई योगी-यती भी गंगाजल पर इतनी श्रद्धा न रखता होगा। उनका सारा घर, भीतर से बाहर तक, सातवें दिन गऊ के गोबर से लीपा जाता था। इतना ही नही, उनके यहां बगीचे में एक पण्डित बारहों मास दुर्गा पाठ भी किया करते थे। साधु-संन्यासियों का आदर-सत्कार तो उनके यहां जितनी उदारता और भक्ति से किया जाता था, उस पर राजों को भी आश्चर्य होता था। यों कहिए कि सदाव्रत चलता था। उधर मुसलमान फकीरों का खाना बावर्चीखाने में पकता था और कोई सौ-सवा सौ आदमी नित्य एक दस्तरखान पर खाते थे। इतना दान-पुण्य करने पर भी उन पर किसी महाजन का एक कौड़ी का भी कर्ज न था। नीयत की कुछ ऐसी बरकत थी कि दिन-दिन उन्नति ही होती थी। उनकी रियासत में आम हुक्म था कि मुर्दो को जलाने के लिए, किसी यज्ञ या भोज के लिए, शादी-ब्याह के लिए सरकारी जंगल से जितनी लकड़ी चाहे काट लो, चौधरी साहब से पूछने की जरूरत न थी। हिंदू असामियों की बारात में उनकी ओर से कोई न कोई जरूर शरीक होता था। नवेद के रुपये बंधे हुए थे, लड़कियों के विवाह में कन्यादान के रुपये मुकर्रर थे, उनको हाथी, घोड़े, तंबू, शामियाने, पालकी-नालकी, फर्श-जाजिमें, पंखे-चंवर, चांदी के महफिली सामान उनके यहां से बिना किसी दिक्कत के मिल जाते थे, मांगने-भर की देर रहती थी। इस दानी, उदार, यशस्वी आदमी के लिए प्रजा भी प्राण देने को तैयार रहती थी।


चौधरी साहब के पास एक राजपूत चपरसी था भजनसिंह। पूरे छ: फुट का जवान था, चौड़ा सीना, बाने का लठैत्, सैकड़ों के बीच से मारकर निकले आने वाला। उसे भय तो छू भी नहीं गया था। चौधरी साहब को उस पर असीम विश्वास था, यहां तक कि हज करने गये तो उसे भी साथ लेते गये थे। उनके दुश्मनों की कमी न थी, आस-पास के सभी जमींदार उनकी शक्ति और कीर्ति से जलते थे। चौधरी साहब के खौफ के मारे वे अपने असामियों पर मनमाना अत्याचार न कर सकते थे, क्योंकि वह निर्बलों का पक्ष लेने के लिए सदा तैयार रहते थे। लेकिन भजनसिंह साथ हो, तो उन्हें दुश्मन के द्वार पर भी सोने में कोई शंका न थी। कई बार ऐसा हुआ कि दुश्मनों ने उन्हें घेर लिया और भजनसिंह अकेला जान पर खेलकर उन्हें बेदाग निकाल लाया। ऐसा आग में कूद पड़ने वाला आदमी भी किसी ने कम देखा होगा। वह कहीं बाहर जाता तो जब तक खैरितयत से घर न पहुंच जाय, चौधरी साहब को शंका बनी रहती थी कि कहीं किसी से लड़ न बैठा हो। बस, पालतू भेड़े की-सी दशा थी, जो जंजीर से छुटते ही किसी न किसी से टक्कर लेने दौड़ता है। तीनों लोक में चौधरी साहब कि सिवा उसकी निगाहों में और कोई था ही नही। बादशाह कहो, मालिक कहो, देवता कहो, जो कुछ थे चौधरी साहब थे।मुसलान लोग चौधरी साहब से जला करते थे। उनका ख्याल था कि वह अपने दीन से फिर गये हैं। ऐसा विचित्र जीवन-सिद्धांत उनकी समझ में क्योंकर आता। मुसलमान, सच्चा मुसलमान है तो गंगाजल क्यों पिये, साधुओं का आदर-सत्कार क्यों करे, दुर्गापाठ क्यों करावे? मुल्लाओं में उनके खिलाफ हंडिया पकती रहती थी और हिन्दुओं को जक देने की तैयारियां होती रहती थीं। आखिर यह राय तय पायी कि ठीक जन्माष्टमी कि दिन ठाकुरद्वारे पर हमला किया जाय और हिन्दुओ का सिर नीचा कर दिया जाय, दिखा दिया जाय कि चौधरी साहब के बल पर फूले-फूले फिरना तुम्हारी भूल है। चौधरी साहब कर ही क्या लेंगे। अगर उन्होंने हिन्दुओं की हिमायत की, तो उनकी भी खबर ली जायगी, सारा हिन्दूपन निकल जायगा।


क्रमश...

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