आज का विचार,हम सब साधारण लोग हे,लेकिन हम मे से कितने लोग अपने सिद्धांतो पर चलते हे ? एक बार आप अपने सिद्धांतो पर अडिग रह कर देखे, काम तो दुनिया के सब हो ही जाते हे,देर सवेर, लेकिन् सिद्धांतो, नियमो की बलि चढा कर हुये काम से कभी शान्ति नही मिलती, ओर हम कही ना कही खुद को गिरा हुआ भी महसुस करते हे, तो चलिये एक छोटा सा प्रसंग आज विचार के रुप मे पढे, ओर बताये केसा लगा?
यह घटना उस समय की हॆ जब महत्मा गांधी जी ने अहमदावाद के कोचरब मे अपना एक आश्रम खोला,एक बार उस आश्रम मे एक हरिजन ओर गरीब परिवार रहने के लिये आ गया,ओर यह बात उन लोगो को अच्छी नही लगी जो आश्रम को आर्थिक सहयोग गेते थे, लेकिन वह सब गांधी जी के स्वाभ ओर द्र्षतिकोण के आगे वॆसे तो वे चुप रहे, लेकिन किसी बहाने से आर्थिक सहयोग देना बन्द कर दिया, शायद उन्हे लगता था की, पॆसे का संकंट आने पर आश्रम का काम नही चलेगा, ओर गांधी जी उस परिवार को मजबुरी मे आ कर बाहर कर देगे.
अब आर्थिक सहयोग के ना मिलने से आश्रम के कामो मे, संचालन मे अवरोध तो जरुर उपस्थित हुया पर गांधी जी विचलित नही हुये,वह अपने सिद्धांतो से कोई समझोता नही करना चाहते थे.एक दिन प्रात काल कोई अजनबी अपना परिचय ना दे कर गांधी जी के चरणॊ मे कई हजार रुपये भेंट कर गया, जिससे आश्रम सफ़लता पूर्वक जन सेवा के लिये निर्बाध गति से चलता रहा
प्रेरक वृतांत के लिये आभार !!
ReplyDeleteभाटिया साब, आपने सत्य और प्रेरणादायक
ReplyDeleteद्रष्टान्त पेश किया है ! कही मैंने एक वाक्य
लिखा देखा था " सत्य परेशान हो सकता है ,
पर पराजित नही " इस वाक्य की याद दिला
दी ! बहुत धन्यवाद !
सिद्धांतों की बातें करना बहुत आसान है..जबकि उन पर अमल करना उतना ही मुश्किल!सिधान्तों पर चलने के लिए मानसिक बल की ज़रुरत होती है...बहुत बढ़िया प्रसंग !
ReplyDeletemujhe itna achha lagta hai yaha aana ki kya bataun.......
ReplyDeleteaap ek sandarbh se jo kuch bhi parivartan lana chaha hai,wah samman yogya hai,
bahut achha laga
पता नहीं; गांधीजी मानते थे या नहीं; मिरेकल्स होते हैं और सामान्यत: वे शुद्ध मानस के पक्ष में होते हैं।
ReplyDeleteइस अच्छी पोस्ट के लिए भाटिया साहब आप का शुक्रिया ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहानी सुनाई आपने !
ReplyDeleteआप लोगो को नैतिक शिक्षा दे
रहे हैं ! बड़ा ही सुंदर कार्य है !
शुभकामनाएं !
maha purushon ne kya kaha
ReplyDeletejo likha gayaa vohi tha is baat ke paksh me gyanduttji se sahmat
bahut sundar natik shiksha hai is par sabhi ko amal karana chahiye par sabhi esa nahi kar pate hai . raaj samay ab badal gaya hai log sareaam naitikata ko taak par rakh rahe hai ye sab khasakar apne desh bakhoobi dekhane ko mil raha hai vaise mai pallavi ji ke vicharo se bhi sahamat hun . badhiya naitik prasang . dhanyawaad. raj ji .
ReplyDeleteप्रेरक... ! सिद्धांतों पर चलें और अगर वे अच्छे सिद्धांत हो तो फिर रुकावट तो आ ही नहीं सकती.
ReplyDeletepost ki shuruwaat hi aapne bahut sundar shabdo se ki... ek prerak prasang ke liye dhanyawaad
ReplyDeleteNew Post :
मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास
राज जी आपकी सभी पोस्ट बहुत बढ़िया होती हैं पर ये तो वास्तव में सर्वोत्तम हैं इस पोस्ट के लिए आपका आभार और धन्यवाद
ReplyDeleteराज जी आपकी सभी पोस्ट बहुत बढ़िया होती हैं पर ये तो वास्तव में सर्वोत्तम हैं इस पोस्ट के लिए आपका आभार और धन्यवाद
ReplyDeleteराज जी , बहुत अच्छी बात कही आपने "सिद्धांतों और नियमो को बलि चढा कर हुए काम से कभी शान्ति नही मिलती "
ReplyDeletenice thoughts
ReplyDeletedhnyabad.....paraye desh ki har rachna ko padhna kahin na kahi se gyanbardhak hai.....
ReplyDeleteek bar fir dhnyabad
ache prerak prasang se parichay kraya hai..
ReplyDeletejari rahe..
pate ki baat
ReplyDeleteprernadayee
prasangvash nirantarta jari rakhe