धन नहीं, श्रमदान
आज का चिंतन यानि विचारो क मंथन हम मे से ज्यादा तर लोग हमेशा मदद की इन्त्जार मे रहते हे,कोई जान पहचान हो,कोई सिफ़रिश हो,कुछ पेसा दे कर(रिशवत)दे कर हमारा काम हो जाये, क्यो की हमे खुद पर भारोसा नही हे, एक बार अपने पर भरोसा करके देखो आप के काम केसे होते हे,हम विचार इस लिये करते हे, कि हमे कुछ अच्छी बात जीवन मे ग्रहन करने को मिले,तो चलिये आज का विचार बताये केसा लगा...
यह बात उन दिनो की हे जब गराम सेवा आश्रम बन रहा था,गांधी जी वहां अकेले झोपडी डाल कर रहते थे,बाकी लोग बर्धा से पांच मील पेदल चल कर आते थे,रास्ता बहुत ही खराब ओर ऊबड-खबड वाला था, ऊच नीचा, एक दिन कुछ लोगो ने गांधी जी से कहा की बापू अगर आप एक चिठ्ठी प्रशासन को लिख दे तो यहं का रास्ता ठीक हो जाये गा, गांधी जी कुछ देर सोच कर बोले यह काम मे नही करुगा, फ़िर बोले यहां का रास्ता बिना प्रशासन के भी ठीक हो सकता हे,
किसी ने पुछा वह केसे बापू जी ? गांधी जी बोले श्रम दान से,कल से सभी लोग बर्धा से आते समय अपने साथ इधर उधर बिखरे हुये पत्थर उठा कर ले आये, ओर रास्ते मे बिछाते आये, अगले दिन से यह काम शुरु हो गया, सभी लोग अपने साथ पत्थर लाते ,उन्हे बिछाते गांधी जी उन्हे समतल करते.गांधी जी के प्रशंसको मे बृजकृष्ण चांदी वाल भी थे,उन का शरीर काफ़ी भारी था, एक दिन वह आश्रम देखने आये, उन्हे मालुम था की आश्रम तक का पांच मील का रास्ता खराब हे ओर उन्हे पसीना आ गया, किसी तरह से वह आश्रम तक पहुचे , गांधी जी ने उन्हे आदर पूरवक बिठाया, चांदीवाल झुझंला कर बोले मेरा स्वागत बाद मे करना , लेकिन यह तो बतओ क्या दो दो पत्थर से रास्ता बन जाये गा, यदि आप प्रशासन से मदद नही लेना चाहते तो , तो मुझे बतईये इस काम के लिये मे सारा पेसा देता हू, आप काम शुरु करवाईये.
गांधी जी मुस्कुरा कर बोले , अरे भाई गुस्सा क्यो करते हॊ,मुझे आप के दान की जरुरत तो हे, लेकिन धन दान की नही श्रम दान की, आप जानते हे की बुंद बुंद से समुन्द्र भर जाता हे,आईये आप भी हमारे साथ इस काम मे लग जाईए. इस से तीन लाभ होगें आश्राम ठीक होगा, धन बचेगा ओर आप की तोंद भी पिचक कर अंदर चली जाये गी, ओर इस से आप हमेशा के लिये निरोग हो जाये गे, गांधी जी का इतना कहना था की चांदी वाल जी का गुस्सा शांत हो गया
isiliye we bapu the hain aur rahenge.aapka naya rup bhi pyara hai bhaisaab
ReplyDeleteआज लोग अपने मूल्यों को भूल रहे हैं सभी उपभोगतावदिता को अपना रहे हैं श्रम दान तो अब केवल गुरुद्वारे में कार सेवा के रूप में ही सुनने को मिलता है । आपका उद्धरण बहुत अच्छी लगा काम का काम बना तोंदू की तोंद भी निकली..बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
aapki har rachna ek saargarbhit baaton se parichay karati hai......
ReplyDeletebahut achha laga padhkar
एक ज्ञान वर्धक संस्मरण सुनाया आपने बापू का .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है। विचार करने की प्रेरणा देता है। बधाई
ReplyDeleteइसीलिए तो बापू बापू हैं !
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक प्रसंग है !
धन्यवाद !
Nice thoughts sir. eep blogging.
ReplyDeletebahut prerna dene wala prasang bataya aapne..agar ham sab shram ke moolya ko samajh jaayen to kaya palat ho jaye.
ReplyDeletesach behad gambheer hai lekhan aapaka
ReplyDeleteaabhaaree hoon
lekin hamare shabd asardar kyon naheen ho pate ....?
dada sach ham is yug pashemaan kyon rahen
सुंदर और प्रेरक !
ReplyDeleteप्रेरक प्रसंग का धन्यवाद.
ReplyDeleteकाश आपके यह प्रसंग हमारे बच्चे और पढने लगें !
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