आज का चिंतन यानि आज का विचार जिस से हमे कोई शिक्षा मिले, जरुरी भी नही वो विचार हमे धर्मिक पुस्तको ही मिले, चिंतन हमे किसी महा पुरष की जीवनी से, किसी कहानी के रुप मे भी मिल सकता हे.... आज के चिंतन हे उपकार, एहसान
चिंतन (उपकार )
बहुत समय पहले पेरिस के एक होटेल मे शाम के समय एक आदमी आया, बेयरे ने उसे मेज दी ओर उस व्यक्ति ने खाने का आर्डर दिया, थोडी देर बाद बेयरे ने खाना मेज पर लगा दिया, अब उस व्यक्ति ने जब खाना खाना शुरू किया तो उसे देख कर लग रहा था, जेसे वो कई दिनो का भुखा हो,उस ने ओर खाने का आर्डर दिया, ओर खुब भर पेट खाना खाया, जब उस व्यक्ति का पेट अच्छी तरह भर गया तो वो अदामी अराम से बेठ गया, बेयरे ने सभी बर्तन वहा से उठाये, ओर थोडी देर बाद उस आदमी के खाने का बिल ले कर आया, ओर उस आदमी के सामने शालीनता से रख दिया.
उस व्यक्ति ने बेयरे से कहा, देखो मेरे पास एक पेसा भी नही हे, यह बात सुन कर बेयरा बहुत हेरान हुया, इतने बडे होटेल मे इस आदमी ने कितनी शान से खाना खाया, ओर अब कितनी शान से कह रहा हे मेरे पास एक पेसा भी नही बिल चुकाने के लिये, बेयरे ने उस आदमी से पुछा आप हे कोन, तो उस आदमी ने कहा मे यहां एक राजनिति पनाह गीर हु, देखो मे कई दिनो का भुखा था, आज तुम मेरे खाने के पेसे देदो, जब भी मेरे पास पेसे होगे मे तुम्हारा यह कर्ज जरुर लोटा दुगा. बेयरे ने उस आदमी को ध्यान से देखा, ओर कुछ सोच कर उस के खाने का बिल चुका दिया.
इस बात को गुजरे कई साल बीत, वो आदमी एक शक्तिशाली देश का शासक बना,आप जानना चाहेगे वो आदमी कोन था ? वो आदमी लेनिन था, व्लादिमीर लेनिन जब वो शासक बने तो अपने बुरे वक्त के किसी भी उपकारी को नही भुले, नही भुले उस बेयरे को भी, ओर एक पत्र के साथ बहुत से उपहारो के साथ, ओर उस बिल की राशि, ओर एक अलग से राशि उस बेयरे को भीजवाई, ओर पत्र मे बहुत बहुत धन्यवाद के साथ साथ अपने ना आने के कारण देते हुये क्षमा मांगी.बुरे समय मे जो भी हमारा साथ दे हमारी मदद दे उस का एह्सान हमे कभी नही भुलना चाहिए,
चाहे वो हेसियात मे हम से कितना भी छोटा कयो ना हो,हम उस के कर्जदार हे, एक उपकार के,सो उसे हमेशा अपने से ऊचा ही स्थान देना चहिये,
लेनिन जैसा होना चाहिए। मगर बेयरे जैसा? बहुत सोच समझ कर चलना पड़ेगा। साल में एकाध बार तो चल सकता है। और जिस का बिल चुकाया वो लेनिन न हुआ तो।
ReplyDeleteदिनेश जी आप का धन्यवाद.
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