कल का शेष..
डरा सहमा सा मे उस रोशनी की ओर इस उम्मीद से चला चलो इन्संनो मे जा कर मुझे थोडा सकुन मिले गा,थोडी हिम्मत आयेगी, काफ़ी खेतो के बीच से होता हुया, मे गिरता पडता वहा पहुच गया,ओर पहले माजरा देखने के लिये काफ़ी दुर से उन्हे देखने लगा, मे काफ़ी दुर था सो उन्होने मुझे देखा नही,ओर मेने देखा कि वो वहा पर दारू निकाल रहे थे शायाद,ओर सभी तकरीब नशे मे धुत थे, ओर बहुत ही गन्दी गन्दी गालिया दे रहे थे,जहा मे मदद की आस लेकर गया वहां जा कर मे ओर भी डर गया, ओर दबे पावं वहा से वापिस आ गया ओर दिल मे इन लोगो को देख कर भुत का डर जाता रहा, मे फ़िर सडक पर आ गया, सोचा वपिस जा कर साईकिल ले आउ लेकिन हिम्मत नही हुई,ओर उस चांदनी रात मे वह सडक सफ़ेद रगं की दिख रही थी, थोडी दुर गया तो मुझे गन्ने (ईख) के खेत दिखे,कुछ सोच कर मेने एक गन्ना तोड लिया, ओर उसे छील कर सडक पर आया तो मेरे सामने दो लाल लाल आंखे मुझे घुराती हुई महसुस हुई, मेने देखा ठीक मेरे सामने कुते से काफ़ी बडा एक गिदड मुझे घुर रहा हे, ओर मुह से अजीब सी आवाज निकाल रहा हे अब मेरे गले से भी मदद के लिये कोई आवाज डर के मारे नही निकल रही थी, लेकिन मेने सुना तो था गीदड बहुत डरपोक होता हे लेकिन यह तो मेरे से मुकाबला करने को तेयार था,मेरा शरीर बुरी तरह से कांप रहा था, अब तो सब भगवान का नाम भी भुल गया,सभी आरातिया भुल गया, अब यकीन होगया की अब मरना हे, तभी पिता जी की कहई बात दिमाग मे आई,कभी भी डरो मत केसी भी स्तिथि हो,लडो मत खम्खा, लेकिन जब लडे बिना गुजारा न हो तो समाने वाले से पहले तुम वार करो आधी लडाई तुम जीत गये,यह सब बहुत जलद जल्द दिमाग मे आये, लेकिन मे एक बच्चा इस गीदड से.. तभी मुझे हाथ के गन्ने का ध्यान आया, ओर मेने बिना समय गवाये, पुरी हिम्मत ( रही सही हिम्मत )से उस गन्ने को दोनो हाथ से पकड कर उस गीदड की ओर मारा, तभी मुझे उस गीदड की आजीब सी आवाज आई ओर वो एक तरफ़ खेतो मे आवाज करता हुया भाग गया,ओर मे भी अपनी मंजिल की ओर फ़िर जोर से भागा, मुझे नही मालुम गीदड कॊ लगी या नही कयो की उस से बडा गीदड तो मे था,ओर अब भागते भागते मे नदी के पुल तक पहुच गया,यहा से गाव थोडी दुर ही था सो थोडी जान मे जान आई, यहा एक चाय की दुकान थी, ओर वो हमे पहचानताभी था सोचा वो मेरी मदद जरुर करे गा, लेकिन उस दुकान पर भी ताला लटक रहा था, मेने प्म्प से जल्दी जल्दी थोडा पानी पिया ओर गाव की ओर फ़िर से चल पडा,अभी तक मुझे कोई भी आदमी नही दिखा, जो मेरी मदद कर सके
वहा से गिरता पडता किसी तरह से घर पहुच गया,ओर सामने ही बडा सा गेट था,वहा तक पहुचते पहुचते मेरी हिम्मत खतम हो चुकी थी, किसी तरह से गेट तक पहुच कर गेट को जोर से खट्खटा कर वही गिर गया,थोडी देर मे अन्दर से मोसा ओर उन का नोकर आये ओर मुझे उठा कर अन्दर ले आये,मेरी सांस बुरी तरह से फ़ुली हुइ थी,इतनी देर मे सभी जाग उठे,ओर सब ने मुझे बहुत प्यार किया ओर पानी बगेरा पिलाया,अब रात के करीब १,०० बज गया था, ओर मे थोडा सम्भल भी गया था,मेरी राम कहानी सुनने के बाद के बाद मोसा बोले चलो अभी चलते हे ओर साईक्लि भी ले आते हे, ओर मे उन से कुछ ना बोला, थोडी देर मे मोसा ओर एक दो पडोसी तेयार हुये, सब ने अपनी अपनी बन्दुक उठाई ओर ट्रेकटर पर्र सभी बेठ कर साथ मे मुझे ले कर चल पडे उसी ओर थोडी देर मे हम उस जगह के पास पहुच गये जहा रोशानी थी, तभी दो आदमी हमारे सामने खडे थे दोनो के हाथो मे लाठिया थी लेकिन मोसा ओर दुसरो के हाथो मे दो नली देख कर नमस्कार कर के आगे से हठ गये, फ़िर थोडा आगे जाने पर साईक्लि भी सडक के बीच मे पडी मिली, ओर पिछे मेरा बेग भि बधा था, वहा से वापिस गाव आगये,सुबह पता चला की साईक्लि के पिछले पहिये मे एक रास्सी फ़सं गई थी जो धीरे धीरे पुरी तरह से चेन मे फ़स गाई ओर साईकिल बन्द पड गई, ओर पाव की आवाज मोसा ने कहा जव दिलमे डर हो तो एसा ही होता हे, लेकिन वो गीदड सच मे था,अगर उस समय मे डर जाता तो शायद गीदड मुझे मार देता. लेकिन दो दिन तक हमे बहुत थकावट रही फ़िर सब हमारी कहानी सुने.ओर हमे भी मजा आये,लेकिन छोटे बच्चो को कभी भी अकेले नही जाना चहिये.
मजेदार कहानी थी.. कल से इंतजार में था.. :)
ReplyDeleteराज जी अच्छी कहानी परोसी। गीदड़ भी किसी को देखते ही नहीं भागता। जब पड़ती है तब भागता है। हिम्मत हो तो गीदड़ भी गीदड़ न रहे।
ReplyDeleteबढिया और रोचक कहानी
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
गीदड़ की रोचक कहानी पढ़कर आनंद आ गया . बढ़िया कहानी परोसने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छी रही यह कथा भी!!
ReplyDeleteआप सब का बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteराज जी आप की कहानी का बुनाव बेहद उम्दा है
ReplyDeleteबधाइयां