आंखो देखी, कानो सुनी... लेकिन आज का सच
अरे कहा गये सब.... सुबह से एक रोटी नही मिली... एक बुजुर्ग
बहूं .. मिल जायेगी अभी समय नही...
अरे बहूं मेने कल शाम से कुछ नही खाया..
तो...
बुढा अपने बेटे की तरफ़ देखता है, ओर बेटा बेशर्मो की तरह से नजरे चुरा कर कहता है... बाऊ जी आप भी बच्चो की तरह से चिल्लते है... थोडा सब्र क्यो नही करते??
बुढा... अपने बेटे से कमीने तुझे इस लिये पाल पोस कर बडा किया था....
तभी बहु की आवाज आती है ..... हराम जादे तू कब मरेगा... हमारी जान कब छोडेगा यह कुत्ता... सारा दिन भोंकने के सिवा इसे कोई दुसरा काम नही.......
( जब कि यह परिवार उसी हराम जादे की पेंशन ही खाते है)
उसी पल इस बुजुर्ग ने खाना छोड दिया ओर करीब एक माह बाद भूख से तडप तडप कर मर गया...
ओर पेंशन आधी हो गई
्राज जी आज तीसरी बार आपके बलाग पर आयी हूँ दो बार टिप्पणी पोस्ट नहीं हो पायी तब तक ये पोस्ट नहीं थी। बहुत मार्मिक घटना है लगता है इस बार भारत से बहुत सी ऐसी यादें ले कर गये हैं ।अभार्
ReplyDeleteअजीब लोग!
ReplyDeleteजल उठता है कलेजा ऐसी घटनायें सुन कर। कहते हैं ना एक बाप चार बच्चों को पाल लेता है पर वही चार बच्चे मिल कर एक बाप नहीं पाल सकते। इससे तो बे औलाद होना भला।
ReplyDeleteनमस्कार राज जी
ReplyDeleteजीवन मूल्यों में बदलाव आ रहा है पर इस कदर! आजकल तो कामकाजी महिलायें अपने सास ससुर को बच्चे पालने की वस्तु समझकर घर में रखती हैं। बेचारे बुजुर्ग, पहले अपने बच्चे (जो नालायक निकले) को पाला फ़िर उनके बच्चों को।
राज जी बङी दर्द नाक घटना का उलेख्ख किया . आपने। ऐसे बेटे और बहू ना हो तो ही अच्छा होगा।
ReplyDeleteदुखद है
ReplyDeleteत्रासद है
जघन्य भी है
__________लेकिन काल्पनिक नहीं है
राजजी,
ये सच है ....इसी दुनिया का सच !
कहीं कोई कमी रह जाती है पालन-पोषण में ?
ReplyDeleteया हवाओं में ही कुछ जहर घुला है ?
मालिक ऐसों को सदबुद्धि दे
[आप आये ... नयी पोस्ट लिखी ...अच्छा लगा राज जी ]
शर्मनाक.
ReplyDeletekai gharon me yahi hota hai, aagat ka bhay bhi nahi , kyonki har vyakti khud ko nipun samajhta hai....aankhen bhar aayi,par......
ReplyDeleteHe bhagwaan !
ReplyDeletekya kahe,kuch kaha hi nahi jaa raha,aisa bhi kar sakte hai log?
ReplyDeleteकल हो सकता है कि इन्हें भी ये सब भोगना पड़े।
ReplyDeleteऐसा बहुत होने लगा है।
ReplyDeleteराम! राम! हे ईश्वर! ये क्या हो रहा है?? ऐसे लोग कलंक हैं समाज में।
ReplyDeleteस्तब्धकारी
ReplyDeleteबहुत दुखद!
ReplyDeleteत्रासद...
ReplyDeleteबहुत दुखद लगा.
ReplyDeleteरामराम.
पता नहीं ऐसे लोगों की आत्मा होती भी है या नहीं कैसे रोज आईना देखते होंगे और अपने जालिम चेहरे को देखते होंगे।
ReplyDeleteबेहद दुखद और अफसोसजनक....
ReplyDeleteregards
काफी मजेदार हास्यव्यंग्य था आपका ! ये बुढाऊ लोग होते ही ऐसे है ! जवानी भर अच्छे कर्म तो खुद किये नहीं और बुढापे में चले दूसरो को नसीहत देने और तंग करने ! जैसे बीज बोवोगे फल भी तो वैसे ही मिलेंगे ! वो तो मुझे लगता है की बहु किसी शरीफ घराने की थी जो बेचारी सिर्फ चंद शब्द बोलकर ही चुप रह गई, वरना कोई दबंग घराने की होती तो देती बुढाऊ की रीढ़ की हड्डी तोड़ के ! बुड्ढे ने खाना पीना छोड़ के नुकशान अपना ही किया, महीने भर में ही खिसक लिया नहीं तो दो-चार साल और पूरी पेंशन खा लेता ! :-))))
ReplyDeleteदुनिया का सच ..
ReplyDeleteदुखद!!!
@ पी.सी.गोदियाल नमस्कार.
ReplyDeleteआप की टिपण्णी से मन बहुत खुश हुया, ओर जब आदमी खुश होता है तो उस के मन से दुया निकलती है... भगवान करे आप को भी ऎसे ही शरीफ़ घर की ऎसी ही बहु मिले... ओर फ़िर
@ राज भाटिया साहब, आपकी मेरे लिए की गई दुआ सर आँखों पर !
ReplyDeleteलेकिन. एक बात आपको और बता दू की भगवान् की कृपा से मैंने अभी तक कोई बुरे कर्म नहीं किये ! हा-हा-हा-हा !
भाटिया जी इसके सिवा ओर क्या कहा जा सकता है कि ऎसी औलादों को तो बीच चौराहे पे खडे करके उनपे भूखे कुत्ते छोड देने चाहिए.......या फिर ऎसी औलाद से तो बेऔलाद होना भला!!!
ReplyDeleteयह व्यवहार बढ़ता जा रहा है। परेशानी की बात है!
ReplyDeleteकड़वा सच है यह आज का जी
ReplyDeleteअरे सरजी जर्मनी आया होता तो आपसे मिले बिना कैसे लौट आता. वो तो एअरपोर्ट पर ट्रांजिट के लिए रुका था ६ घंटे. बाहर निकलने कहाँ दिया गोरो ने :)
ReplyDeleteहमारे एक रिश्तेदार हैं गाँव में..उम्र उनकी तकरीबन नब्बे के आस पास है...एक बार जब गाँव गयी और उनके बेटे बहू और पोते पोतियों को बुजुर्ग की सेवा में समर्पित देखा तो मेरा मन अगाध श्रद्धा से भर गया कि आज के समय में जब घर घर में बुजुर्गों को दुत्कारा जा रहा है तो ऐसे में इनका यह समर्पण....वाह !! जबकि उस परिवार की सामाजिक छवि बड़ी ही नकारात्मक थी.....
ReplyDeleteबाद में पता चला कि बुजुर्गवर अपने ज़माने में सरकारी सेवा में अच्छे पद पर थे और दिमाग वाले भी थे सो उन्होंने अपने नाम अपना सरकारी पेंशन, वृद्धा पेंशन, स्वतंत्रता सेनानी पेंशन इत्यादि अनेको पेंशन लिस्ट में एडजस्ट कर लिया था...इनकी जान इनके परिवार वालों के लिए इतनी कीमती थी जिसे इनके परिवार वाले पिंजडे में तोते की तरह सम्हाले हुए थे...
बुजुर्ग के पीठ पीछे उन्हें दम भर गरियाते कोसते और सामने पड़ते ही उन्हें सर माथे चढा लेते...
बहुत सही कहा है आपने.....दुनिया के ये रंग बहुत अधिक वितृष्णा पैदा करते हैं...
दुखद और शर्मनाक है ,पर क्या करे ऐसा हो रहा है .
ReplyDeleteभाटिया जी ,
ReplyDeleteप्रणाम |
आपको जान कोई भी आश्चर्य नहीं होगा कि अक्सर, किसी भी महीने की ५ से १० के बीच, बैंको की लम्बी लाइनों में मुझे एसे "हराम जादे " मिल जाते है जिन के संग कोई न कोई "कमीना" खड़ा होता है कि कब बैंक का कैशिएर पेंशन दे और हाथों में हरे हरे नोट आए | देखने वाला भी एक बार को शरमा जाए पर यह लोग जिस बेशर्मी से अपने बुजुर्गवार के हाथों से रुपये छीन लेते है उस तरह तो शायद कोई लुटेरा भी न ले | रुपये मिलने से पहेले तक "बाबूजी" या "माताजी", और रुपये मिलते ही "कौन हो जी ??"
एक विचारनीय पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाईयां |
सदर आपका
शिवम् मिश्रा
मैनपुरी
उत्तर प्रदेश
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी एक नज़र डाले |
ReplyDeleteलिंक नीचे दे रहा हूँ |
http://burabhala.blogspot.com/
राज भाटिया साहब नमस्कार,
ReplyDeleteजो टिप्पणी मै आज दे रहा हूँ, शायद कल मेरी टिप्पणी के जबाब में जो "आर्शीवाद" आपने मुझे दिया था, उसके बाद मेरे द्वारा की गई टिप्पणी में भी कर सकता था ! मगर मैंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया ! उसका कारण यह था कि कल आपके ब्लॉग पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा था, लोग धडाधड टिप्पणी भेजे जा रहे थे ! और मैंने जो अपनी सबसे पहले वाली टिपण्णी में "आज की नारी" पर कटाक्ष करने की कोशिश की थी, इस टिप्पणी को दे देने पर उसका मजा किरकिरा हो जाता, इसलिए आज दे रहा हूँ ! उम्मीद है आपने मेरी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लिया होगा !
आपकी लघु कथा वास्तव में बहुत ही प्रेरक थी, और आज के उस कटु सत्य को बयाँ कर रही थी जो आपको, हमको हर गली-कूचे में देखने को मिल जाए ! ये "हरामजादे आज के नौनिहाल" जब छोटे होते है तो माँ-बाप का खून चूस लेते है कि हमें ये दिला दो, हमें वो दिला दो मगर जब अपना कर्तव्य निर्वहन करने की इनकी बारी आती है तो ये जोरू के गुलाम बन जाते है !
आपकी रचना इस दिशा में एक बहुत सार्थक कदम है, और आप भविष्य में भी पाठको के समक्ष ऐसी ज्वलंत समस्याओं को उठाते रहेंगे, मुझे उम्मीद है!
मेरी शुभकामनाये !
शीर्षक पढ़ते ही मै चौंक गया भाटिया जी लेकिन इतनी मार्मिक कथा ! यह इस तथाकथित सभ्य समाज के मुँह पर एक तमाचा है -शरद कोकास दुर्ग.छ.ग.
ReplyDeleteअत्यंत दुखद
ReplyDeleteलेकिन ऐसी कहानियां तो आजकल समाज में बिखरी पडी हैं.
वृद्धों की हालत तो ऐसी है की अपना दुःख कहें भी तो किसे ?
आपकी पोस्ट से मन खिन्न हो गया.
दुर्व्यवहार करने वाले क्या ये भी भूल जाते हैं की कल उनके साथ इससे भी बुरा हो सकता है ?
@ पी.सी.गोदियाल नमस्कार.
ReplyDeleteमेने पाप किये या नही मुझे नही पता, लेकिन मेने आज तक यही कोशिश कि की भुल से भी कभी मेरे से किसी का दिल ना दुखे, मुझे आप से कोई गिला नही, ओर मै भगवान से यही दुया करता हुं कि ऎसी बहूं किसी को ना दे जिस ने एक स्वर्ग से घर को नरक बना दिया है... जिस की कहानी मेने यहां दी, उन के बारे बताना अब बहुत जरुरी हो गया है सो अगली पोस्ट मै इन के बारे बताऊगां
आप का दिल मेरी टिपण्णी से दुखा हो तो माफ़ी चाहूंगा.
धन्यवाद
बहुत ही दर्दनाक और शर्मनाक घटना है! ऐसे लोगों को सज़ा मिलनी चाहिए तब जाकर सबक मिलेगी!
ReplyDeleteRAAJ JI ............ JINDAGI KE KADUAA SACH KO KUCH HI LAAINO MEIN LIKHAA HAI AAPNE ..... YE GHAR GHAR KI KAHAANI HO GAYEE HAI .... POST PADH KAR MAN DARD SE BHAR GAYA .....
ReplyDeleteक्या सचमुच लोग इतने बुरे हो गये हैं ? इंसान ही है न ?
ReplyDeletemarmik abhivyakti
ReplyDeletekuch log gali dekar paisa le lete hai kuch log meetha bolkar peeth peeche churi ghopte hai .
ReplyDeletehar ghar ka sach bta diya hai .
isi vishy par maine "vatvrksh ki shok sabha "likhi hai krpya pdhe .lonk de rhi hoo
http://shobhanaonline.blogspot.com/2009_08_01_archive.html
एसा घटना बहुत दुखद होता है पर वो जानते हूवे भी अनजान बनने की कोशीस करते हैं|
ReplyDeleteएसा बेटा,बहुत हर जगह ठोकर खाते हैं और उनके साथ भी कभी ना कभी एसा होता ही है|
बहुत = बहु :) गलती से "त" लग गया
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