tag:blogger.com,1999:blog-59245671989680500122024-02-02T06:32:42.473+01:00पराया देश Paraya Deshमैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गयाराज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comBlogger636125tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-7027135565020971972020-01-22T06:01:00.003+01:002020-01-22T06:01:22.326+01:00संगीता जी आपने बहुत अच्छी तरह समझाया है मेरे ख्याल में लोग पढ़ते तो है लेकिन कॉमेंटनहीं दे रहे लेकिन आपकी मेहनत धीरे धीरे रंग लाएगीराज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-32930337009107525362020-01-22T06:01:00.001+01:002020-01-22T06:01:21.914+01:00संगीता जी आपने बहुत अच्छी तरह समझाया है मेरे ख्याल में लोग पढ़ते तो है लेकिन कॉमेंटनहीं दे रहे लेकिन आपकी मेहनत धीरे धीरे रंग लाएगीराज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-77458415299795854142017-07-28T22:22:00.001+02:002017-07-28T22:22:29.621+02:00आज के इंसान की सच्चाई Rajni Kapoor
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मैं थक-हार कर काम से घर वापस जा रहा था। कार में शीशे बंद होते हुए भी..जाने कहाँ से ठंडी-ठंडी हवा अंदर आ रही थी…मैं उस सुराख को ढूंढने की कोशिश करने लगा..पर नाकामयाब रहा।
कड़ाके की ठण्ड में आधे घंटे की ड्राइव के बाद मैं घर पहुंचा…
रात के 12 बज चुके थे, मैं घर के बाहर कार से आवाज देने लगा….बहुत देर हॉर्न भी बजाया…शायद सब सो चुके थे…
10 मिनट बाद खुद ही उतर कर गेट खोला….सर्द रात के सन्नाटे में मेरे जूतों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी…
कार अन्दर कर जब दुबारा गेट बंद करने लगा तभी मैंने देखा एक 8-10 साल का बच्चा, अपने कुत्ते के साथ मेरे घर के सामने फुटपाथ पर सो रहा है… वह एक अधफटी चादर ओढ़े हुए था …
उसको देख कर मैंने उसकी ठण्ड महसूस करने की कोशिश की तो एकदम सकपका गया..
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मैंने Monte Carlo की महंगी जेकेट पहनी हुई थी फिर भी मैं ठण्ड को कोस रहा था…और बेचारा वो बच्चा…मैं उसके बारे में सोच ही रहा था कि इतने में वो कुत्ता बच्चे की चादर छोड़ मेरी कार के नीचे आ कर सो गया।
मेरी कार का इंजन गरम था…शयद उसकी गरमाहट कुत्ते को सुकून दे रही थी…
फिर मैंने कुत्ते की भागने की बजाय उसे वहीं सोने दिया…और बिना अधिक आहट किये पीछे का ताला खोल घर में घुस गया… सब के सब सो रहे थे….मैं चुप-चाप अपने कमरे में चला गया।
जैसे ही मैंने सोने के लिए रजाई उठाई…उस लड़के का ख्याल मन आया…सोचा मैं कितना स्वार्थी हूँ….मेरे पास विकल्प के तौर पर कम्बल ,चादर ,रजाई सब थे… पर उस बच्चे के पास एक अधफटी चादर भर थी… फिर भी वो बच्चा उस अधफटी चादर को भी कुत्ते के साथ बाँट कर सो रहा था और मुझे घर में फ़ालतू पड़े कम्बल और चादर भी किसी को देना गवारा नहीं था…
यही सोचते-सोचते ना जाने कब मेरी आँख लग गयी ….अगले दिन सुबह उठा तो देखा घर के बहार भीड़ लगी हुई थी..
बाहर निकला तो किसी को बोलते सुना-
अरे वो चाय बेचने वाला सोनू कल रात ठण्ड से मर गया..
मेरी पलके कांपी और एक आंसू की बूंद मेरी आँख से छलक गयी..उस बच्चे की मौत से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा…बस वो कुत्ता अपने नन्हे दोस्त के बगल में गुमसुम बैठा था….मानो उसे उठाने की कोशिश कर रहा हो!
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दोस्तों, ये कहानी सिर्फ एक कहानी नहीं ये आज के इंसान की सच्चाई है। मानव से अगर मानवता चली जाए तो वो मानव नहीं रहता दानव बन जाता है…और शायद हममें से ज्यादातर लोग दानव बन चुके हैं। हम अपने लिए पैदा होते हैं….अपने लिए जीते हैं और अपने लिए ही मर जाते हैं….ये भी कोई जीना हुआ!
चलिए एक बार फिर से मानव बनने का प्रयास करते हैं…चलिए अपने घरों में बेकार पड़े कपड़े ज़रूरतमंदों के देते हैं…चलिए…कुछ गरीबों को खाना खिलाते हैं….चलिए….किसी गरीब बच्चे को पढ़ाने का संकल्प लेते हैं….चलिए एक बार फिर से मानव बनते हैं!राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-6862565169143250712017-07-22T21:15:00.002+02:002017-07-28T22:23:12.520+02:00साध्यबेला.साध्यबेला.
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सुबह से तीन बार पढ़ चुके ईमेल पर एक बार पुनः देवव्रत की निगाहें दौड़ने लगी थीं. लिखा था- “पापा, कल दीपक चाचा आए थे. उनसे पता चला, पिछले डेढ़ वर्ष से आपने अपने घर में एक पति-पत्नी को किराएदार के रूप में रखा हुआ है और वे दोनों आपका बहुत ख़्याल रखते हैं. आजकल समय बहुत ख़राब है पापा. ज़रा सोचिए, कोई बिना किसी स्वार्थ के एक पराए इंसान की देखभाल भला क्यों करेगा? कहीं आपने उनसे अपने पैसे या प्रॉपर्टी का ज़िक्र तो नहीं किया है? भारत में आए दिन ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं कि बुज़ुर्ग को मारकर लोग पैसा लूटकर चले गए. इसलिए ज़्यादा दिनों तक एक ही किराएदार को रखना ठीक नहीं है. लोग घर पर ही कब्ज़ा जमाकर बैठ जाते हैं. इसलिए अब दूसरा किराएदार ढूंढ़ लीजिए. मैं जल्द ही भारत आकर आपके सब प्रॉपर्टी के काम निपटाता हूं. बाकी फिर…
आपका अंकित
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बार-बार पढ़ने के बाद भी देवव्रत को पूरे मेल में उन संवेदनाओं का एहसास नहीं हुआ, जो एक बेटे के मन में उसके पिता के प्रति होती हैं. अंकित को इस बात का भय तो था कि कहीं किराएदार पापा के मकान पर कब्ज़ा न कर लें, पर इस बात की तसल्ली कतई नहीं थी कि कोई उसके पापा का ख़्याल रख रहा है. क्या वास्तव में दुनिया इतनी स्वार्थपूर्ण हो गई है कि लोग सोचना तक गवारा नहीं करते कि कोई निःस्वार्थ भाव से किसी पराए इंसान की देखभाल कर सकता है.
जो फ़र्ज़ अंकित और उसकी पत्नी नेहा को पूरा करना चाहिए, वह फ़र्ज़ रजत और प्रिया पूरा कर रहे हैं. इस पर शर्मिंदा होने की जगह अंकित उनकी नीयत पर शक कर रहा है. क्या यही संस्कार दिए थे उन्होंने अपने पुत्र को? कहते हैं, समय की रेत पर हम जो पदचिह्न छोड़ जाते हैं, आनेवाली पीढ़ी उसी का अनुसरण कर आगे बढ़ती है. लेकिन शायद समय के साथ पुरानी मान्यताएं भी बेअसर हो चुकी हैं, वरना उन्होंने और उनकी पत्नी संध्या ने सदैव अपने माता-पिता की सेवा की थी. तीन भाइयों में वह बीच के थे. अपने दो बेटों से निराश होकर जब मां और पिताजी उनके पास रहने आए, तो उन्होंने कभी अपने पास से उन्हें जाने नहीं दिया. तन-मन से उनकी सेवा की. लेकिन कहीं कोई कमी तो अवश्य रह गई थी. कोई सूत्र हाथ से अवश्य ही छूटा था, वरना अंकित इतना भावनाशून्य कैसे बन गया? सबसे बड़ी बात, जो देवव्रत के हृदय को मथे डाल रही थी, वो यह कि कल संध्या की पुण्यतिथि थी, पर पत्र में इस बात का कहीं कोई ज़िक्र नहीं था. क्या वह अपनी मां को भी भूल गया है. पूरे चार वर्ष होने को आए, जब संध्या उन्हें छोड़कर इस दुनिया से चली गई थी. उसके रहते जीवन में कितना उल्लास था. कितनी जीवंतता थी. हरदम एक नई ऊर्जा से भरे रहते थे वह. पत्नी के साथ उम्र के अंतिम पड़ाव को ज़िंदादिली से गुज़ारने की ख़्वाहिश थी उनकी. किन्तु रिटायरमेंट के बाद तीन वर्ष साथ निभाकर संध्या एक रात सोई, तो सुबह उठी ही नहीं. नींद में ही हार्टफेल हो गया था उसका. देवव्रत की तो दुनिया ही उजड़ गई थी. संध्या के बिना जीवन की कल्पना ही उनके लिए मुश्किल थी.
उनका एक ही बेटा था अंकित, जो अमेरिका में सेटल था. मां की मृत्यु पर वह आया था. महीना भर रहा भी. जाने से पहले उसने कहा था, “पापा, कुछ दिनों के लिए आप मेरे साथ चलिए.” किंतु उन्होंने इंकार करते हुए कहा, “नहीं अंकित, अभी मैं यहीं रहना चाहता हूं. इसी घर में. यहां की आबोहवा में तुम्हारी मां की सांसें बसी हुई हैं. उसकी यादों के सहारे बाकी की ज़िंदगी काट देना चाहता हूं.” किंतु अकेले रहना इतना सरल न था. खाने की द़िक्क़त की वजह से उनका स्वास्थ्य दिनोंदिन गिरता जा रहा था. आख़िरकार उन्हें बेटे के पास जाना ही पड़ा.
शिकागो में दो माह कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. अंकित और नेहा उनका ध्यान रखते थे. हर वीकेंड पर वे तीनों घूमने निकल जाते. वहां की ख़ूबसूरती और रहन-सहन का ढंग, तिस पर बच्चों का साथ, उन्हें लगा उनकी बाकी की ज़िंदगी आराम से कट जाएगी.
एक दिन अंकित से उन्होंने इस संदर्भ में बात की, “तुम यूएस सिटिजन हो, मेरे ग्रीन कार्ड के लिए अप्लाई करोगे, तो जल्द ही मिल जाएगा. मैं चाहता हूं शेष जीवन तुम लोगों के साथ ही गुज़ार दूं.” यह सुनते ही नेहा की भावभंगिमा कठोर हो गई थी. उस दिन के बाद से ही उन दोनों का उनके प्रति व्यवहार बदल गया था. ज़ाहिर था, वे दोनों उन्हें अपने साथ रखना नहीं चाहते थे. उनके ठंडे और उपेक्षित व्यवहार को वे ज़्यादा दिन तक सहन नहीं कर पाए थे और तीन माह शिकागो रहकर वापस भारत लौट आए थे. चार वर्ष गुज़र गए. अंकित ने फिर कभी उन्हें अमेरिका नहीं बुलाया.
अमेरिका से लौटकर उन्होंने अपनी देखभाल के लिए एक नौकर रख लिया, पर जल्द ही वह घर में चोरी करके भाग गया. तब उनके एक मित्र ने उन्हें किराएदार रखने की सलाह दी, जो भले ही किराया कम दे, पर उनके खाने, घर की साफ़-सफ़ाई आदि का ख़्याल रखे. इस संदर्भ में पेपर में पढ़कर ही रजत और प्रिया उनके पास आए थे.
उनका तीन बेडरूम का फ्लैट था. अपने लिए एक बेडरूम और बालकनी छोड़कर शेष पूरा घर उन्होंने किराए पर उठा दिया था. शुरू-शुरू में वे अपने कमरे में ही रहते थे. बाहर निकलने में उन्हें संकोच होता. नए शादीशुदा जोड़े की प्राइवेसी में दख़ल न हो, यही विचार मन में लिए वह अपने कमरे में ही पड़े रहते.
सुबह की चाय रजत कमरे में पहुंचा देता. उसके ऑफिस चले जाने पर नाश्ता, लंच आदि की ज़िम्मेदारी प्रिया की रहती. उस दिन संडे था. बेड टी पीने के बाद वे अपने कमरे में चुपचाप लेटे छत को निहार रहे थे. रजत कमरे में आकर बोला था, “अंकल, आप हमारे पिता के समान हैं. सारा दिन कमरे में अलग-थलग से क्यों पड़े रहते हैं? बाहर आकर हमारे साथ बैठकर बातें किया कीजिए. खाना भी हमारे साथ ही खाया कीजिए.” सुनकर उन्हें अच्छा लगा, पर प्रकट में बोले, “बेटे, मैं नहीं चाहता. तुम दोनों को परेशानी हो.”
“इसमें परेशानी की क्या बात है अंकल, बल्कि हमें अच्छा लगेगा.” रजत उनका हाथ पकड़कर नाश्ते की टेबल तक ले आया था. उनकी पलकें भीग उठी थीं. कुछ पुरानी स्मृतियां दिलोदिमाग़ पर उभरने लगी थीं. जिस दिन उन्होंने अंकित से अपने ग्रीन कार्ड की बात की थी, उसी दिन से अंकित और नेहा अलग-थलग से रहने लगे थे. यहां तक कि खाना भी साथ बैठकर नहीं खाते थे. देवव्रत सारा दिन अकेले पड़े रहते.
एक शाम अंकित और नेहा के ऑफिस से आने पर वे अपनी चाय लेकर उन दोनों के पास जा बैठे थे, ताकि दो घड़ी बच्चों से बात कर सकें. कुछ अपनी कहें, कुछ उनकी सुनें. लेकिन नेहा को उनका आना नागवार गुज़रा था. चिढ़कर वह अंकित से इस तरह बोली ताकि देवव्रत को सुनाई पड़ जाए. “अंकित, सारा दिन थके हम घर लौटे हैं. अब क्या हमें अपने घर में भी प्राइवेसी नहीं मिलेगी?” देवव्रत उल्टे पांव कमरे से बाहर चले गए थे. उस दिन उन्होंने सोचा, एकांतवास ही करना है, तो क्यों न भारत जाकर अपने घर में संध्या की यादों के साथ रहा जाए और वे लौट आए थे.
किंतु अतीत का सुख भी वर्तमान के दुख का कारण बनता है. अकेलेपन से उपजी निराशा ने धीरे-धीरे उनके दिलोदिमाग़ को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था. उनका घूमने जाना, दोस्तों से मिलना-जुलना सब छूट गया था. धीरे-धीरे जीने की इच्छा ही समाप्त हो गई थी. क्यों जीएं और किसके लिए? आख़िर उनका अपना है ही कौन? आज जब रजत और प्रिया ने आत्मीयता से अपने पास बैठाकर खाना खिलाया, तो उनकी आंखें भर आईं. न जाने कितने दिनों बाद अपनत्व का एहसास हुआ था. उस दिन के बाद से रजत और प्रिया अपनी हर समस्या उनके साथ शेयर करते और उनसे यथोचित सलाह लेते.
उस दिन सुबह प्रिया ने कहा था, “अंकल, बेड टी पीकर आप मॉर्निंग वॉक पर जाया कीजिए, आपने देखा नहीं, चलते समय आपकी टांगें कांपने लगी हैं. यह घर में बैठे रहने का नतीजा है.” किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उन्होंने प्रिया की बात मानकर घूमने जाना शुरू कर दिया था. एक दिन रजत और प्रिया ने उन पर ज़ोर डाला कि वह अपने सब दोस्तों को चाय पर बुलाएं. ख़ुशी से उनकी आंखों से आंसू बहने लगे थे. ऐसा लग रहा था, जैसे एक बार पुनः वह ज़िंदगी से जुड़ने लगे हों.
न जाने कितने वर्षों बाद उस शाम वह खुलकर हंसे थे. रजत और प्रिया के साथ समय कैसे गुज़र गया, पता ही नहीं चला और अब पिछले चार माह से उनकी व्यस्तताएं बढ़ गई हैं. रजत ने उन्हें कंप्यूटर सिखा दिया है और वे उसके बिज़नेस का एकाउंट मेंटेन करने में उसकी मदद करने लगे हैं. अक्सर वह सोचते हैं, रजत और प्रिया के साथ अवश्य ही उनका कोई पिछले जन्म का नाता है, तभी तो दोनों उन्हें इतना स्नेह व मान-सम्मान देते हैं.
आज अंकित का पत्र पढ़कर भले ही उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची हो, पर एक बात उन्हें अवश्य समझ में आ गई है कि ख़ून के रिश्ते दिल के भी क़रीब हों, यह ज़रूरी नहीं है. अंकित को वे बता देना चाहते हैं कि उनके पास जो भी रुपया-पैसा व प्रॉपर्टी है, वे उन्हें अपने पिता से विरासत में नहीं मिली है, बल्कि उनकी दिन-रात की मेहनत से कमाई हुई है. इसलिए वे उसे जिसे चाहे दें, यह उनकी इच्छा पर निर्भर करता है.
उन्होंने और संध्या ने सारी ज़िंदगी मेहनत की, पर स्वयं पर ख़र्च करने में सदैव कोताही बरती, ताकि वे अंकित को पढ़ने के लिए अमेरिका भेज सकें. अपने बुढ़ापे के लिए कुछ जोड़ सकें. लेकिन अब सभी चिंताओं से मुक्त वह बिंदास जीवन जीना चाहते हैं. स्वयं पर ख़र्च करना चाहते हैं. अंकित को लगता है, रजत और प्रिया जो भी कर रहे हैं, उसमें उनका स्वार्थ निहित है. हो सकता है, उसका यह संदेह निराधार न हो, पर आज का सच यही है कि जीवन की इस सांध्यबेला में रजत और प्रिया ने ही उनको न स़िर्फ सहारा दिया है, बल्कि उनकी ज़िंदादिली से जीने की ख़्वाहिश भी पूरी की है. आज अंकित का पत्र पढ़कर उनका यह निश्चय दृढ़ हुआ है कि वह रजत और प्रिया को उनकी सेवा का फल अवश्य देंगे. अपनी वसीयत में अपना यह मकान रजत और प्रिया के नाम करके वह दुनिया को यह संदेश देना चाहते हैं कि सेवा करनेवाले का हक़ सदैव बड़ा होता है. ज़िंदगी का क्या भरोसा, पता नहीं, कल का सूरज देखना नसीब हो या न हो, इसलिए वह उठे और अपनी इस इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए अपने वकील के पास चल दिए.
Rajni Kapoorराज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-60377223926968319152017-07-12T12:04:00.002+02:002017-07-12T12:04:27.605+02:00हाउसवाइफ़<b>Rajni Kapoor
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हाउसवाइफ़
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प्रज्ञा को रिसेप्शन हॉल में बिठाकर नितिन न जाने किधर गुम हो गए. प्रज्ञा उस डेकोरेटेड हॉल और उसमें विचरती रूपसियों को देखकर चमत्कृत-सी हो रही थी. कहां तो आज अरसे बाद वह थोड़े ढंग से तैयार हुई थी. नीली शिफ़ॉन साड़ी के साथ मैचिंग एक्सेसरीज़ में ख़ुद को दर्पण में देख शरमा-सी गई थी प्रज्ञा. शादी के बीस बरस बाद भी उसमें इतनी कशिश है. वैसे तो उसकी सादगी ही उसकी कमनीयता को बढ़ा देती है. चालीस की उम्र में तीस की नज़र आना वाकई कमाल की बात है.
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घर से निकलते समय टीनएजर बेटी ने प्यारा-सा कॉम्प्लीमेंट उछाल दिया था, “हाय मम्मी! आज तो पार्टी में आप छा जाएंगी.”.
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लेकिन यहां तो समीकरण ही उलट गया था. उन आधुनिकाओं से अपनी सादगी की तुलना कर उस एयरकंडीशन्ड हॉल में भी उसके माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा उठीं. पर्स से रुमाल निकाल कर अभी वह पसीना सुखा ही रही थी कि मेकअप में लिपी-पुती-सी एक मैडम मुस्कुराती हुई उसके सामने प्रकट हुई,
“एक्सक्यूज़ मी, आप मिसेज़ नितिन खरे हैं ना?” प्रज्ञा कुछ बोल सकने की स्थिति में नहीं थी. किसी तरह उसने स्वीकारोक्ति में गर्दन हिला दी
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“मैं रमोला भारती, केमिस्ट्री डिपार्टमेंट से हूं. सर ने कहा है कि आपको सबसे मिला दूं.”
प्रज्ञा उसके साथ यंत्रवत् चलने लगी. “इनसे मिलिए, ये हैं मिसेज़ नितिन खरे!” रमोला ने इस अदा से प्रज्ञा को सभी के सामने मिलाया कि कई जोड़ी निगाहें उसका एक्स-रे करने लगीं.
“वैसे आप करती क्या हैं?” खनकदार आवाज़ में उछाले गए प्रश्न के जवाब में प्रज्ञा ज़बरन मुस्कुराई, “मैं हाउसवाइफ़ हूं.”
“हाउसवाइफ़! ओह तभी तो इतनी सिंपल हैं.”
न चाहते हुए भी प्रज्ञा की नज़रें आवाज़ की दिशा में उठ गईं. एक भारी-भरकम शरीर की महिला, जिसने अपने शरीर को वेस्टर्न ड्रेस में जकड़ रखा था और मेकअप की परतों के बीच अपनी उम्र को छिपाने की नाकाम-सी कोशिश की हुई थी, कुछ अजीब अंदाज़ में मुस्कुरा रही थी.
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पता नहीं प्रज्ञा की नज़रों में क्या था कि रमोला सकपका गई, “आप हैं मिसेज़ साक्षी सान्याल, इन्फोसिस में चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव हैं. मिस्टर सान्याल यहां फ़िज़िक्स के हेड ऑफ़ दि डिपार्टमेंट हैं.”
फिर बारी-बारी से रमोला ने सबका परिचय कराया. उनमें से आधी से ज़्यादा तो यूनिवर्सिटी की लेक्चरार थीं और बाकी प्रो़फेसर्स की पत्नियां, जो कहीं न कहीं जॉब करती थीं. तभी तो प्रज्ञा का हाउसवाइफ़ होना उन्हें हैरत में डाले हुए था.
प्रज्ञा का जी चाह रहा था कि वह चुपचाप उठकर वापस घर चली जाए, लेकिन यह भला कैसे संभव था? पार्टी तो उसी के पति मिस्टर नितिन खरे के सम्मान में हो रही थी. वेटर कोल्ड ड्रिंक लेकर आया तो उसने बेमन से ले लिया.
नितिन के लिखे ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ को आज कुलपति के हाथों ‘अकादमी पुरस्कार’ मिलने वाला था और उन्हें ‘रीडर’ की उपाधि से भी नवाज़ा जा रहा था. नितिन के लेक्चरार से रीडर बनने तक के सफ़र में प्रज्ञा ने हर पल उनका साथ दिया था. अब वह इन तितलियों को अपने जॉब न करने की क्या सफ़ाई दे?
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एक तो नितिन का स्वभाव ऐसा है कि वे जब तक घर में रहें, प्रज्ञा उनके आसपास होनी चाहिए. दूसरी बात, जो ख़ुद प्रज्ञा को गंवारा नहीं थी, वह यह कि उसके बच्चे आया के भरोसे पलें. उन्हें स्कूल से आकर मां के बदले बंद ताले को देखना पड़े. ख़ैर जो भी हो, लेकिन आज प्रज्ञा कुंठित हो गई थी. हाउसवाइफ़ होना वाकई हीनता का परिचायक है. हाउसवाइफ़ का अपना कोई वजूद नहीं होता. वैसे कभी-कभार प्रज्ञा के मन में अपने हाउसवाइफ़ होने को लेकर हीन ग्रंथि पलने लगती थी, लेकिन उसने आज जैसा अपमान कभी महसूस नहीं किया था. अभी प्रज्ञा न जाने और कितनी देर तक ख़ुद से सवाल करती, अगर रमोला ने टोका न होता, “अरे मैम, आप खाली बोतल लेकर बैठी हैं, दूसरी लाकर दूं?”
वाकई उसकी कोल्ड ड्रिंक तो कब की समाप्त हो गई थी. वो ज़बरन मुस्कुराते हुए ‘नो थैंक्स’ कह, उठकर खाली बोतल डस्टबिन के हवाले कर आई. प्रज्ञा की कुंठा उस पर हावी होती जा रही थी. वह सचमुच उठकर जाने की सोच ही रही थी कि स्टेज पर माइक थामे नितिन को देखकर अपनी कुर्सी से चिपक कर रह गई. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नितिन की गंभीर आवाज़ गूंज उठी,
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“वैसे तो यह एक घिसा-पिटा डायलॉग है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक औरत का योगदान होता है, लेकिन मेरे मामले में यह सौ फ़ीसदी सच है. आज मैं अपनी पत्नी प्रज्ञा की बदौलत ही इस मुक़ाम पर पहुंच सका हूं. मेरी ज़िंदगी में सबसे अहम् बात मेरी पत्नी प्रज्ञा का हाउसवाइफ़ होना है. डबल एम. ए. और गोल्ड मेडलिस्ट होते हुए भी मेरी इच्छा की ख़ातिर प्रज्ञा हाउसवाइफ़ बन कर हर क़दम पर मेरे साथ चलती रही.”
प्रज्ञा जैसे नींद से जागी. उसकी कुंठा परत दर परत पिघलने लगी और नितिन का भाषण जारी रहा, “तन-मन से पूरी तरह समर्पित प्रज्ञा ने मुझे घर-बाहर की तमाम ज़िम्मेदारियों से मुक्त नहीं रखा होता, तो मैं इतना बड़ा ग्रंथ नहीं लिख पाता. आज के दौर में औरतों का जॉब करना उनका स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है. लेकिन मुझे लगता है कि अगर प्रज्ञा भी कहीं जॉब करके ख़ुद की पहचान तलाश कर रही होती तो शायद मैं आज भी एक साधारण-सा लेक्चरार बना रहता.”
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तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही प्रज्ञा की कुंठा पूरी तरह बह गई. उसका एक्स-रे करने वाली निगाहें अब झुकने लगीं. शायद वे रंगे हाथों पकड़ी गई थीं. पति के बराबर, बल्कि ़ज़्यादा कमाने के रौब में वे पति और बच्चों को कितना तवज्जो देती हैं? क्या उनके पति कभी नितिन की तरह सरेआम उनकी प्रशंसा कर सकते हैं? शायद कभी नहीं.
नितिन ने प्रज्ञा को कितना ऊंचा उठा दिया था, यह मेहमानों की नज़रों में प्रज्ञा के प्रति उभर आए सम्मान से साफ़ पता चल रहा था.
“मैं तो यही जानता हूं कि यह ग्रंथ मैं प्रज्ञा की बदौलत ही पूरा कर सका हूं. इसलिए इस पुरस्कार की असली हक़दार मेरी पत्नी प्रज्ञा है. आय एम प्राउड ऑफ़ माई लवली वाइफ़.”
तालियों की गूंज के बीच प्रज्ञा स्टेज पर पहुंची. कुलपति महोदय ने नितिन को मेडल पहनाया तो नितिन ने उसे प्रज्ञा के गले में डाल दिया. प्रज्ञा का चेहरा अलौकिक तेज़ से चमक उठा. अपने पति के एक वाक्य ‘आय एम प्राउड ऑफ़ माई वाइ़फ ’ ने एक हाउसवाइफ़ को अपने हाउसवाइफ़ होने के गर्व से अभिभूत कर दिया.
Rajni Kapoor
राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-13450759354920325312017-07-06T15:55:00.001+02:002017-07-07T10:04:11.683+02:00दिशाविहीन रिश्तेRajni Kapoor
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देशी घी की खुशबू धीरेधीरे पूरे घर में फैल गई. पूर्णिमा पसीने को पोंछते हुए बैठक में आ कर बैठ गई.
‘‘क्या बात है पूर्णि, बहुत बढि़याबढि़या पकवान बना रही हो. काम खत्म हो गया है या कुछ और बनाने वाली हो?’’
‘‘सब खत्म हुआ समझो, थोड़ी सी कचौड़ी और बनानी हैं, बस. उन्हें भी बना लूं.’’
‘‘मुझे एक कप चाय मिलेगी? बेटा व बहू के आने की खुशी में मुझे भूल गईं?’’ प्रोफैसर रमाकांतजी ने पत्नी को व्यंग्यात्मक लहजे में छेड़ा.
‘‘मेरा मजाक उड़ाए बिना तुम्हें चैन कहां मिलेगा,’’ हंसते हुए पूर्णिमा अंदर चाय बनाने चली गई.
65 साल के रमाकांतजी जयपुर के एक प्राइवेट कालेज में हिंदी के प्रोफैसर थे. पत्नी पूर्णिमा उन से 6 साल छोटी थी. उन का इकलौता बेटा भरत, कंप्यूटर इंजीनियरिंग के बाद न्यूयार्क में नौकरी कर लाखों कमा रहा था.
भरत छुटपन से ही महत्त्वाकांक्षी व होशियार था. परिवार की सामान्य स्थिति को देख उसे एहसास हो गया था कि उस के अच्छा कमाने से ही परिवार की हालत सुधर सकती है. यह सोच कर हमेशा पढ़ाई में जुटा रहता था. उस की मेहनत का ही नतीजा था कि 12वीं में अपने स्कूल में प्रथम और प्रदेश में तीसरा स्थान प्राप्त किया.
रमाकांतजी की माली हालत कोई खास अच्छी न थी. भरत को कालेज में भरती करवाने के लिए बैंक से लोन लिया था, पर किताबें, खानापीना दूसरे खर्चे इतने थे कि उन्हें और भी कई जगह से कर्जा लेना पड़ा. एक छोटा सा मकान था, उसे आखिरकार बेच कर किसी तरह कर्जे के भार से मुक्त हुए.
भरत ने अच्छे अंकों से इंजीनियरिंग पास कर ली. फिर जयपुर में ही 2 वर्ष की टे्रनिंग के बाद उसे कंपनी वालों ने न्यूयार्क भेज दिया.
विदेश में बेटे को खानेपीने की तकलीफ न हो, सोच कर जल्दी से गरीब घर की लड़की देख बिना दानदहेज के साधारण ढंग से उस की शादी कर दी.
तुरंत शादी करने के कारण अब तक जो थोड़ी सी जमा पूंजी थी, शादी में खर्च हो गई.
बहू इंदू, गरीब घर की थी. उस के पिता एक होटल में रसोइए का काम करते थे. इंदू सिर्फ 12वीं तक पढ़ी थी और एक छोटी सी संस्था में नौकरी करती थी. उस की 3 बहनें और थीं जो पढ़ रही थीं.
रमाकांतजी व उन की पत्नी की सिर्फ यही इच्छा थी कि एक गरीब लड़की का ही हमें उद्धार करना है. उन्हें दानदहेज की कोई इच्छा न थी. उन्होंने साधारण शादी कर दी.
शादी होते ही अगले हफ्ते दोनों न्यूयार्क चले गए. शुरूशुरू में फोन से बेटाबहू बात करते थे फिर महीने में, फिर 6 महीने में एक बार बात हो जाती. बेटे की आवाज सुन, उस की खैरियत जान उन्हें तसल्ली हो जाती.
न्यूयार्क जाने के बाद भरत ने एक बार भी घर रुपए नहीं भेजे. पहले महीने पगार मिलते ही फोन पर बोला, ‘‘बाबूजी, यहां घर के फर्नीचर लेने आदि में बहुत खर्चा हो गया है. यहां बिना कार के रह नहीं सकते. 1-2 महीने बाद आप को पैसे भेजूंगा.’’
इस पर रमाकांतजी बोले, ‘‘बेटा, तुम्हें वहां जो चाहिए उसे ले लो. यहां हमें पैसों की जरूरत ही क्या है. हम 2 जनों का थोड़े में अच्छा गुजारा हो जाता है. हमारी फिक्र मत कर.’’
उस के बाद भरत से पैसे की कोई बात हुई ही नहीं.
रमाकांत व पूर्णिमा दोनों को ही इस बात का कोई गिलाशिकवा नहीं था कि बेटे ने पैसे नहीं भेजे. बेटा खुश रहे, यही उन्हें चाहिए था. थोड़े में ही वे गुजारा कर लेते थे.
2 साल बाद बेटे ने ‘मैं जयपुर आऊंगा’ फोन पर बताया तो पूर्णिमा की खुशी का ठिकाना न रहा.
पूर्णिमा से फोन पर भरत अकसर यह बात कहता था, ‘अम्मा, यह जगह बहुत अच्छी है. बड़ा घर है. बगीचा है. बरतन मांजने व कपड़े धोने की मशीन है. आप और बाबूजी दोनों आ कर हमारे साथ ही रहो. वहां क्या है?’
‘तुम्हारे बाबूजी ने यहां सेवानिवृत्त होने के बाद जयपुर में एक अपना हिंदी सिखाने का केंद्र खोल रखा है. जिस में विदेशी और गैरहिंदीभाषी लोग हिंदी सीखते हैं. उसे छोड़ कर बाबूजी आएंगे, मुझे नहीं लगता. तुम जयपुर आओ तो इस बारे में सोचेंगे,’ अकसर पूर्णिमा का यही जवाब होता था.
बेटे के बारबार कहने पर पूर्णिमा के मन में बेटे के पास जाने की इच्छा जाग्रत हुई. अब वे हमेशा पति से इस बारे में कहने लगीं कि 1 महीना तो कम से कम हमें भी बेटे के पास जाना चाहिए.
अब जब बेटे के आने का समाचार मिला, खुशी के चलते उन के हाथपैर ही नहीं चलते थे. हमेशा एक ही बात मन में रहती, ‘बेटा आ कर कब ले जाएगा.’
भरत जिस दिन आने वाला था उस दिन उसे हवाई अड्डे जा कर ले कर आने की पूर्णिमा की बहुत इच्छा थी. परंतु भरत ने कहा, ‘मां, आप परेशान मत हों. क्लियरैंस के होने में बहुत समय लगेगा, इसलिए हम खुद ही आ जाएंगे,’ उस के ऐसे कहने के कारण पूर्णिमा उस का इंतजार करते घर में अंदरबाहर चक्कर लगा रही थीं.
सुबह से ही बिना खाएपिए दोनों को इंतजार करतेकरते शाम हो गई. शाम 4 बजे करीब भरत व बहू आए. आरती कर बच्चों को अंदर ले आए. पूर्णिमा की खुशी का ठिकाना नहीं था. बेटाबहू अब और भी गोरे, सुंदर दिख रहे थे. रमाकांतजी बोले, ‘‘सुबह से अम्मा बिना खाए तुम्हारा इंतजार कर रही हैं. आओ बेटा, पहले थोड़ा सा खाना खा लें.’’
‘‘नहीं, बाबूजी, हम इंदू के घर से खा कर आ रहे हैं. अम्मा, आप अपने हाथ से मुझे अदरक की चाय बना दो. वही बहुत है.’’
तब दोनों का ध्यान गया कि उन के साथ में सामान वगैरह कुछ नहीं है.
इंदू ने अपने हाथ में पकड़े कपड़े के थैले को सास को दिए. उस में कुछ चौकलेट, एक साड़ी, ब्लाउज, कपड़े के टुकड़े थे.
पूर्णिमा का दिल बुझ गया. बड़े चाव से बनाया गया खाना यों ही ढका पड़ा था.
चाय पी कर थोड़ी देर बाद भरत बोला, ‘‘ठीक है बाबूजी, हम कल फिर आते हैं. हम इंदू के घर ही ठहरे हैं. एक महीने की छुट्टी है,’’ कहते हुए चलने के लिए खड़ा हुआ भरत तो इंदू शब्दों में शहद घोलते हुए बोली, ‘‘मांजी आप ने हमारे लिए इतने प्यार से खाना बनाया, फिर भला कैसे न खाएं. फिलहाल भूख नहीं है. पैक कर साथ ले जाती हूं.’’ और सास के बनाए हुए पकवानों को समेट कर बड़े अधिकार के साथ पैक कर दोनों मेहमानों की तरह चले गए.
रमाकांतजी और पूर्णिमा एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए. रमाकांतजी पत्नी के सामने अपना दुख जाहिर नहीं करना चाहते थे. पर पूर्णिमा तो उन के जाते ही मन के टूटने से बड़बड़ाती रहीं, ‘कितने लाड़प्यार से पाला था बेटे को, क्या इसी दिन के लिए. ऐसा आया जैसे कोई बाहर का आदमी आ कर आधा घंटा बैठ कर चला जाता है,’ कहते हुए पूर्णिमा के आंसू बह निकले. रमाकांतजी पूर्णिमा के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे तसल्ली देने की कोशिश करने लगे. दिल में भरे दर्द से उन की आंखें गीली हो गई थीं लेकिन अपना दर्द जबान से व्यक्त कर पूर्णिमा को और दुखी नहीं करना चाहते थे.
रमाकांतजी ने पत्नी को कई तरह से आश्वासन दे कर मुश्किल से खाना खिलाया. 2 दिन बाद भरत फिर आया. उस दिन पूर्णिमा जब उस के लिए चाय बनाने रसोई में गई तब अकेले में बाबूजी से बोला, ‘‘बाबूजी, इंदू को अपनी मां को न्यूयार्क ले जा कर साथ रखने की इच्छा है. उस की मां ने छोटी उम्र से परिवारबच्चों में ही रह कर बड़े कष्ट पाए हैं. इसलिए अब हम उन्हें अपने साथ न्यूयार्क ले कर जा रहे हैं. आप सब बातें अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए मैं आप को बता रहा हूं. अम्मा को समझाना अब आप की जिम्मेदारी है.
‘‘फिर, इंदू को न्यूयार्क में अकेले रहने की आदत हो गई है. आप व मां वहां हमेशा रह नहीं सकते. इंदू को अपनी प्राइवेसी चाहिए. अम्मा व इंदू साथ नहीं रह सकते, बाबूजी. आप वहां आए तो कहीं इंदू के साथ आप दोनों की नहीं बने, इस का मुझे डर है. इसीलिए आप दोनों को मैं अपने साथ रखने में हिचक रहा हूं. बाबूजी, आप मेरी स्थिति अच्छी तरह समझ गए होंगे,’’ वह बोला.
‘‘बेटा, मैं हर बात समझ रहा हूं, देख रहा हूं. तुम्हें मुझे कुछ समझाने की जरूरत नहीं है. रही बात तुम्हारी मां की, तो उसे कैसे समझाना है, अच्छी तरह जानता हूं,’’ बोलते हुए आज रमाकांतजी को सारे रिश्ते बेमानी से लग रहे थे.
इस के बाद जिस दिन भरत और इंदू न्यूयार्क को रवाना होने वाले थे उस दिन 5 मिनट के लिए विदा लेने आए.
उस रात पूर्णिमा रमाकांतजी के कंधे से लग खूब रोई थी, ‘‘क्योंजी, क्या हमें कोई हक नहीं है अपने बेटे के साथ सुख के कुछ दिन बताएं. बेटे से कुछ आशा रखना क्या मातापिता का अधिकार नहीं.
‘‘क्या मैं ने आप से शादी करने के बाद किसी भी बात की इच्छा जाहिर की, परंतु अपने बेटे के विदेश जाने के बाद, सिर्फ 1 महीना वहां जा कर रहूं, यही इच्छा थी, वह भी पूरी न हुई...’’ पूर्णिमा रोतेरोते बोलती जा रही थी और रमाकांतजी यही सोच अपने मन को तसल्ली दे रहे थे कि शायद उन के ही प्यार में, परवरिश में कोई कमी रह गई होगी, वरना भरत थोड़ा तो उन के बारे में सोचता. मां के प्यार का कुछ तो प्रतिकार देता.
इस बात को 2 महीने बीत चुके थे. इस बीच इंदू ने भरत को बताया, आज मैं डाक्टर के पास गई थी. डाक्टर ने कहा तुम गर्भवती हो.’’
अभी भरत कुछ बोलने की कोशिश ही कर रहा था कि इंदू फिर बोली कि शायद इसीलिए कुछ दिनों से मुझे तरहतरह का खाना खाने की बहुत इच्छा हो रही है. इधर, मेरी अम्मा कहती हैं, ‘मैं 1 महीना तुम्हारे पास रही, अब बहनों व पिता को छोड़ कर और नहीं रह सकती. मुझे तो तरहतरह के व्यंजन बनाने नहीं आते. अब क्या करें?’’
‘‘तो हम एक खाना बनाने वाली रख लेते हैं.’’
‘‘यहां राजस्थानी खाना बनाने वाली तो मिलेगी नहीं. तुम्हारी मां को बुला लेते हैं. प्रसव होने तक यहीं रह कर वे मेरी पसंद का खाना बना कर खिला देंगी.’’
‘‘पिताजी 1 महीने के लिए तो आ सकते हैं. उन्होंने जो छोटा सा हिंदी सिखाने का केंद्र खोल रखा है वहां किसी दूसरे आदमी को रख कर परंतु...’’ उसे बात पूरी नहीं करने दी इंदू ने, ‘‘उन्हें यहां आने की क्या जरूरत है? आप की मां ही आएं तो ठीक है.’’
‘‘तुम्हीं ने तो कहा था, हमें प्राइवेसी चाहिए, वे यहां आए तो...ठीक नहीं रहेगा. अब वैसे भी उन से किस मुंह से आने के लिए कहूंगा.’’
‘‘वह सब ठीक है. लेकिन तुम्हारी मां को यहां आने की बहुत इच्छा है. आप फोन करो, मैं बात करती हूं.’’
इंदू की बातें भरत को बिलकुल भी पसंद नहीं आईं, बोला, ‘‘ठीक है, डाक्टर ने एक अच्छी खबर दी है. चलो, हम बाहर खाना खाने चलते हैं, फिर इस समस्या का हल सोचेंगे.’’
वे लोग एक रैस्टोरैंट में गए. वहां थोड़ी भीड़ थी, तो वे सामने के बगीचे में जा कर घूमने लगे. उन्होंने देखा कि बैंच पर एक बुजुर्ग बैठे हैं. दूर से भरत को वे अपने बाबूजी जैसे लगे. अच्छी तरह देखा. देख कर दंग रह गया भरत, ‘ये तो वे ही हैं.’
‘‘बाबूजी,’’ उस के मुंह से आवाज निकली.
‘‘रमाकांतजी ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक बारी तो वे भी हैरान रह गए.
‘‘अरे भरत, बेटा तुम.’’
‘‘बाबूजी, आप यहां. कुछ समझ नहीं आ रहा.’’
बाबूजी बोले, ‘‘देखो, वहां अपना क्वार्टर है. आओ, चलें,’’ रमाकांतजी आगे चले, पीछे वे दोनों बिना बोले चल दिए.
घर का दरवाजा पूर्णिमा ने खोला. रमाकांतजी के पीछे खड़े भरत और इंदू को देख वह हैरान रह गई. फिर खुशी से भरत को गले से लगा लिया. दोनों का खुशी से स्वागत किया पूर्णिमा ने.
‘‘जयपुर में तुम्हारे पिताजी ने जो केंद्र हिंदी सिखाने के लिए खोल रखा है वहां इन के एक विदेशी शिष्य ने न्यूयार्क में ही हिंदी सिखाने के लिए कह कर हम लोगों को यहां ले आया. यह संस्था उसी शिष्य ने खोली है. सब सुविधाएं भी दीं. तुम्हारे बाबूजी ने वहां के केंद्र को अपने जयपुर के एक शिष्य को सौंप दिया.
‘‘तुम्हारे बाबूजी ने भी कहा कि हमारा जयपुर में कौन है, यह काम कहीं से भी करो, ऐसा सोच कर हम यहां आ गए. यहां तुम्हारे बाबूजी को 1 लाख रुपए महीना मिलेगा,’’ जल्दीजल्दी सबकुछ कह दिया पूर्णिमा ने.
‘‘अम्मा, तुम्हारी बहू गर्भवती है. उस की नईनई चीजें खाने की इच्छा होती है. अब उस की मां यहां नहीं आएगी. आप दोनों प्रसव तक हमारे साथ रहो तो अच्छा है.’’
‘‘वह तो नहीं हो सकता बेटा. बाबूजी का यह केंद्र सुबह व शाम खुलेगा. उस के लिए यहां रहना ही सुविधाजनक होगा.’’
‘‘अम्मा, बाबूजी नहीं आएं तो कोई बात नहीं, आप तो आइएगा.’’
‘‘नहीं बेटा, उन की उम्र हो चली है. इन को देखना ही मेरा पहला कर्तव्य है. यही नहीं, मैं भी भारतीय व्यंजन बना कर केंद्र के बच्चों को देती हूं. इस का मुझे लाभ तो मिलता ही है. साथ में, बच्चों के बीच में रहने से आत्मसंतुष्टि भी मिलती है. चाहो तो तुम दोनों यहां आ कर रहो. तुम्हें जो चाहिए, मैं बना दूंगी.’’
‘‘नहीं मां, यहां का क्वार्टर छोटा है,’’ भरत खीजने लगा.
‘‘हां, ठीक है. यहां तुम्हें प्राइवेसी नहीं मिलेगी. वहीं... उसे मैं भूल गई. ठीक है बेटा, मैं रोज इस की पसंद का खाना बना दूंगी. तुम आ कर ले जाना.’’
‘‘नहीं अम्मा, मेरा औफिस एक तरफ, मेरा घर दूसरी तरफ, तीसरी तरफ यह केंद्र है. रोज नहीं आ सकते. अम्मा, बहुत मुश्किल है.’’
‘‘भरत, अब तक हम दोनों तुम्हारे लिए ही जिए, पेट काट कर रह कर तुम्हें बड़ा किया, अच्छी स्थिति में लाए. पर शादी
होते ही हम तुम्हारे लिए बेगाने हो गए,’’ रमाकांतजी ने कहा, ‘‘खून के रिश्ते से दुखी हुए हम तो क्या हुआ? हालात ने नए रिश्ते बना दिए. अब इस रिश्ते को हम नहीं छोड़ सकते. पर तुम जब चाहो तब आ सकते हो. हम से जो बन पड़ेगा, तुम्हारे लिए करेंगे.’’
‘‘तुम्हें जो सहूलियत हो वह करो. खाना तैयार है, अपनेआप ले कर खा लो. मुझे आने में आधा घंटा लगेगा,’’ कह कर पूर्णिमा एक दुकान की तरफ चली गई.
मांबाप के प्रेम को महसूस न कर, पत्नी के स्वार्थीपन के आगे झुक कर, उन की अवहेलना की. अब प्रेम के लिए तड़पने वाले भरत को आरामकुरसी में लेटे हुए पिताजी को आंख उठा कर देखने में भी शर्म आ रही थी. इंदू भी शर्मसार सी खड़ी थी. दोनों भारी मन के साथ घर से बाहर निकलने लगे. रमाकांतजी एक बारी भरत से कुछ कहने की चाह से उठने लगे थे लेकिन उन की आंखों के आगे चलचित्र की तरह पुरानी सारी बातें तैरने लगीं. पैर वहीं थम गए. भरत ने पीछे मुड़ कर देखा, शायद बाबूजी अपना फैसला बदल कर उस से कुछ कहेंगे लेकिन आज उन की आंखें कुछ और ही कह रही थीं. इस सब के लिए कुसूरवार वह खुद था. भरत का गला रुंध गया. बाबूजी के पैर पकड़ कर उन से माफी मांगने के भी काबिल नहीं रहा था.राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-68482266408590246092017-07-04T13:26:00.000+02:002017-07-04T15:54:44.914+02:00अरे हम तो पोस्ट लिखना ही भुल गये , कैसे लिखे ओर कैसे पोस्ट करे ???? चलिये अब यहां तक पहुच गये हे तो पोस्ट भी लिख दे, लेकिन क्या लिखे ????
<b>वो भारतिया मित्र जो पहली बार युरोप ओर अमेरिका कनाडा वगेरा आते हे, यह पोस्ट उन के नाम से...
</b>
हम भारतिया जहां भी किसी सुंदर बच्चे को देखते हे झट से प्यार जताने लगते हे, बच्चे के गालो को दोनो हाथो से प्यार से सहलायेगे, अरे बाबा यह सब भारत मे चलता हे, यहां युरोप वगेरा मे नही, मेरे कई मित्र ऎसा करते हे तो मुसिबत मे फ़ंस सकते हे, हम यहां बच्चा तो बहुत दुर की बात हे किसी के कुत्ते को भी हाथ लगाना हो, कुछ खाने के लिये देना हो तो पहले उस के मालिक से इजाजत लेते हे, ओर बच्चे के मामले मे तो ... तो सज्जनओ जब भी यहां आओ अपने हाथो पर कंटोल रखो, कही प्यार दिखाते दिखाते... बेइज्जत मत करवा लेना , कही लेने के देने ना पड जाये, राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-76567882043324508682012-05-31T13:08:00.000+02:002012-05-31T16:56:16.352+02:00कलयुग आ गया ?बहुत दिनो के बाद आज मन ने कहा चलो आज कुछ लिखे, तो सोचा क्या लिखूं? तभी मन ने कहा जो तुम इस दुनिया मे देखते हे वोही लिखो....यह कोई कहानी नही एक सच्ची घटना हे, जो आज मै आप सब के सामने रख रहा हुं कुछ आंखॊ देखी तो कुछ कानो सुनी...
पिछली बार जब अपने शहर गया तो देखा कि बिल्लो भाभी(बदला हुआ नाम) जो उम्र मे हम से बहुत बडी थी, अपनी कोठी के गेट पर भिखारियो की तरह बेठी थी, बाल बिखरे हुये, लगता था शायद कई दिनो से नहाई ना हो,शरीर बहुत कमजोर सा,आंखे धंसी हुयी सी,तभी कोठी का गेट खुला ओर एक नोकर एक अखबार मे रात का बचा हुआ खाना भाभी के सामने रख गया, मुझे बहुत अजीब सा लगा, अजीब इस लिये कि कभी इस भाभी की आवाज ही इस घर का कानून होती थी, जो कह दिया सो कह दिया....ओर आज..... मैने भाभी को राम राम कही ओर उन के पांव छुये,थोडी देर तो मुझे ताकती रही फ़िर बोली राज तू कब आया, मैने कहा अभी अभी.... फ़िर भाभी खुब रोने लगी ओर अपने लडको को खुब कोसे ओर कहने लगी कि राज देख कलयुग आ गया हे, मैने इन बच्चो के लिये क्या कुछ नही किया ओर इन कमीनो ने अपनी बीबियो के कहने पर मेरा हाल क्या कर दिया....भाभी के पास से बहुत बदबू भी आ रही थी, मै कुछ देर बेठा ओर फ़िर अपने घर वापिस आ गया.
फ़िर भाभी की बाते कि राज **कलयुग आ गया हे*** मेरे कानो मे गुजने लगी, मुझे वो दिन याद आये जब एक दिन अचानक मे भाभी के घर गया तो देखा था कि उस की सास घर मे झाडू पोंछे लगा रही थी, ओर भाभी आराम से ए सी रुम मे बेठी थी, जब की सास को गठिया रोग होने के कारण ऊठना भी कठिन था, लेकिन वो फ़िर भी चूतडो के बल घिस घिस कर पोंछे लगा रही थी, एक दिन भाभी के घर से बहुत जोर जोर से रोने की आवाज आई, हम सब पडोसी भागे गये तो देखा कि बुढिया सास गर्म पानी के कारण जल गई थी ओर चीख रही थी... जब हम सब गये ओर भाभी सफ़ाई देने लगी कि मेरे हाथ से गर्म पानी की बाल्टी गिर गई हे, ओर बुढिया बोली देख झुठ मत बोल मैने तुझे नहाने के लिये पानी मांगा तो तुने ठंडा बर्फ़ जैसा पानी दे दिया, जब मैने गर्म पानी देने को बोला तो तुने कहा ले मर नहा गर्म पानी से ओर सारी बालटी गर्म पानी की मेरे ऊपर उडेल दी....., एक दिन भाई घर पर था, किसी काम से जाना हुआ तो मां अपने लडके के पास बेठी थी, मैने पांव छुये तो बुढिया ने हजारो आशिर्वाद दिये, तभी भाई ने कहा कि चाल पियोगे, ओर हमारे मना करने पर भी हमारे लिये चाय ओर बिस्किट आ गये, हम ने वो बिस्किट ओर चाय के लिये बुढिया मां से पूछा तो उन्होने मना कर दिया, फ़िर मैने उस भाई से मां के बारे बाते शुरु कि तो पता चला कि मां को खाना भाभी की मर्जी से ही दिया जाता हे, बाद मे पडोसियो ने बतलाया कि दो दो दिन बुढिया भुखी रहती हे, ओर बचा हुआ खाना इसे दे दिया जाता हे, जब यह अपने लडको को कहती हे तो भाभी बीच मे बोल पडती थी कि मां की यादास्त खो गई हे यह खाना खा कर भुल जाती हे, मै तो इसे सही समय पर ही खाना देती हुं.... वगेरा वगेरा.... ओर भी बहुत सी बाते ऎसी ही थी,एक दिन भाभी ने बहुत सारा खाना बनाया ओर उस दिन बुढिया को नया सूट पहनाया अपने हाथो से नहालाया, एक सप्ताह तक यह नाटक चला, तो आसपडोस वालो ने सोचा शायद बहूं सुधर गई..... बाद मे पता चला कि कोठी अब बहू के नाम हो गई हे.
कुछ दिनो बाद बुढिया कोठी के गेट पर टुटी हुयी खाट पर ओर कई साल तडप तडप के एक दिन उस ने उसी जगह दम तोड दिया जहां आज भाभी बेठी थी, यह सब बाते जो मैने यहां लिखी बहुत कम हे, पता नही उस बुढिया पर क्या कुछ बीता होगा, लेकिन दुसरे दिन मै भाभी के पास गया ओर वो फ़िर से कोसने लगी अपने बच्चो को तो मैने उसे एहसास करवाया कि भाभी इस जगह तुम्हारी सास कितने साल तडपी थी ओर उस के साथ क्या क्या हुआ था, उसे याद करो आप का समय गुजर जायेगा, हां भाभी..**कलयुग आ गया हे*** ओर इसे तुम ले कर आई थी अपने साथ..... ओर भाभी एक टक मेरी तरफ़ देखने लगी...... फ़िर दुर कही आसमान की तरफ़ देखने लगी..राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-66610549892005566922012-02-07T19:33:00.001+01:002012-02-07T19:33:15.850+01:00आप की नजरो ने समझा प्यार के काबिल हमे.....आप की नजरो ने समझा प्यार के काबिल हमे.....<br />
<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="http://www.youtube.com/embed/HKCQZvfOxqA" width="420"></iframe>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-37589218020488209762011-12-13T07:50:00.000+01:002011-12-13T07:50:00.745+01:00आ रहा हुं मेरे वतन मै...यह मेरी पोस्ट उस समय प्रकाशित होगी जब मे उडन खिटोले पर बेठ कर वापिस अपने देश की ओर आ रहा हुंगा, जब भी कभी ऎसे गीत सुनता हुं तो मुझे अपना बचपन, अपने बचपन के साथी ओर वो हर जगह याद आ जाती हे, यानि अपना देश याद आ जाता हे, चलिये आप सब को मेरी तरफ़ से नमस्ते, अगर आप क पास समय हो तो एक बार सांपला ब्लाग मिलन पर जरुर आये, वही आप सब से दिल भर कर बाते होंगी, कुछ आप लोगो की सुनेगे तो कुछ अपनी सुनायेगे, सांपला ब्लाग मिलन का समय ओर पता आप को मेरे अन्य ब्लाग पर*<a href="http://sikayaat.blogspot.com/" style="color: red;" target="_blank">मुझे शिकायत हे</a>* पर मिल जायेगा.... तब तक सब को राम राम.... ओर लिजिये इस सुंदर गीत का मजा...<br />
<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="http://www.youtube.com/embed/4pcB_F3t5Qo" width="420"></iframe>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-3764476302169423252011-11-29T21:16:00.001+01:002011-11-29T21:19:41.080+01:00मेरे दिल की आवाजआज मेरे पास कोई शव्द नही.....<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.youtube.com/embed/JCHsScCcJB4?feature=player_embedded' frameborder='0'></iframe></div>
<br />राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-66142665801095373462011-11-25T12:41:00.001+01:002011-11-25T12:43:57.317+01:00एक मेल जिस ने आंखे खोल दी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमारे देश भारत की मुद्रा की कीमत आज एक डालर = ५३ रुपये हो गया यानी
कालाधन जो की डालर और सोने के रूप में जमा है उसकी कीमत में बढ़ोत्तरी होती
जाएगी, <br />
उससे भारत को ही खरीदा ज़ा सकेगा, ए चोर अर्थशात्री भारत माता के किस काम के... <br />
१२१ करोड़ की आबादी का भारत देश लेकिन उसकी कीमत इन लुटेरे नेताओ और चोरो की वजह से क्या हो गयी है, जरा इसे पढ़े.... <br />
१-भारत में १२१ करोड़ लोग है और दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, चीन में १३६
करोड़ लोग है परन्तु वहा विदेशी माल नहीं बेचने दिया जाता है.<br />
<a href="http://kranti4people.com/article.php?aid=1973" style="color: red;" target="_blank">पुरा समाचार यहां पढे. </a></div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-13612629837714488682011-11-13T12:27:00.001+01:002011-11-13T12:30:39.269+01:00कवि सम्मेलन और ब्लॉगर्स मित्र मिलन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h1 class="title entry-title">
<a href="http://sikayaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_11.html"><span style="font-size: medium;">कवि सम्मेलन और ब्लॉगर्स मित्र मिलन</span></a></h1>
<h1 class="title entry-title">
<a href="http://sikayaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_11.html"><span style="font-size: medium;">आप सब की जानकारी के लिये... किलक करे प्लीज </span></a></h1>
</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-55683400145444508132011-11-09T16:35:00.001+01:002011-11-09T16:37:14.084+01:00रु-ब-रु ए ब्लॉगर्स<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 class="post-title entry-title">
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</h3>
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<a href="http://sikayaat.blogspot.com/2011/11/blog-post.html">अन्तर सोहिल का प्रणाम स्वीकार करें</a></div>
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ऊपर दिये लिंक पर किल्क करे ओर देखे कुछ नया..</div>
<div style="text-align: justify;">
राम राम</div>
</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-81462392401593887262011-10-24T21:41:00.000+02:002011-10-24T21:41:06.102+02:00दिपावली की शुभकामनाऎ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMWNd1VdA_BqDvUUe6ue8UYpMgZTdYaZHTlRFjkUOTjjWZ6w1D9tc26q2XjLbMPs9el3pUrwUax_eZUSzKyFZDX39shkoyyw3sjaJYUH9K1ptT_1MP0M1QZqRIQXc1Ca40IhD3-qxMmjI/s1600/index.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMWNd1VdA_BqDvUUe6ue8UYpMgZTdYaZHTlRFjkUOTjjWZ6w1D9tc26q2XjLbMPs9el3pUrwUax_eZUSzKyFZDX39shkoyyw3sjaJYUH9K1ptT_1MP0M1QZqRIQXc1Ca40IhD3-qxMmjI/s1600/index.jpg" /></a></div>
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आप सभी मित्रो को दिपावली की बहुत बहुत शुभकामनाऎ, यह वर्ष आप सब के लिये
खुशहाली ले कर आये, ओर आप हर कदम पर तरक्की करे, आप सब के परिवार मे सब
राजी खुशी रहे, आप सब को परिवार समेत दिपावली की शुभकानाऎ, बधाई....</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-57408747674167119172011-08-08T20:03:00.007+02:002011-08-08T20:09:13.872+02:00आप सभी का धन्यवाद ओर नमस्कार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आप सभी के मेल, टिपण्णियां मुझे समय समय पर मिलती रहती हे, ओर जबाब देने मे मै थोडी आलस कर लेता हुं, ओर टिपण्णियां भी मै कभी कभार किसी किसी ब्लाग पर कर लेता हुं, मै नराज किसी से नही हुं, ओर ना ही ब्लाग जगत से अभी गया हुं, रोजाना आप सब के ब्लाग पढता हुं, पहले काफ़ी दिनो तक दिल की वजह से मेरी तबियत खराब रही, जिस का मुझे पता नही चला, ओर मै समझता रहा की शायद मोसम के कारण यह सब हो रहा हे, फ़िर अचानक एक दिन तबीयत बहुत खराब हुयी तो, मुझे अस्पताल जाना पडा, फ़िर दो दिन एमर्जेंसी मे बिताये, ओर फ़िर घर आ गया, ओर आराम की सलाह डा० ने दी, सारा दिन आप लोगो के ब्लाग पढता, लेकिन टिपण्णी देने की हिम्मत ना होती थी थकावट की वजह से,शरिरिक थकावट के अलावा दिमागी थाकवट भी बहुत हो गई थी, कुछ दिन पहले थो॑डा ठीक हुआ.<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqy3T03EOUvufyiXRKUIM2znb4NB92ev3UGRd85v-2-SM3Es5ZuW9DF-Ua-uDXaKTQH58YefFcXXg9xZj3PH_GneH4QAxaOon2HesyNAMdyD36uR_gqev6TPDjJiuFgoEbLLVTUmGJr6o/s1600/0%252C%252C6410716_1%252C00.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqy3T03EOUvufyiXRKUIM2znb4NB92ev3UGRd85v-2-SM3Es5ZuW9DF-Ua-uDXaKTQH58YefFcXXg9xZj3PH_GneH4QAxaOon2HesyNAMdyD36uR_gqev6TPDjJiuFgoEbLLVTUmGJr6o/s1600/0%252C%252C6410716_1%252C00.jpg" /></a></div>
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तो सुबह जल्दी उठा ओर सोचा कि आज से फ़िर कुछ लिखूं ओर आप सब को टिपण्णियां भी दुं, सुबह चाय पी ओर कुछ समाचार पत्र देखे जब ऊठा तो कमर मे झटका लगा, ओर वो दर्द आज तक बना हे, इंजेक्शन यहां डा० मुझे लगाते नही, क्योकि मै खुन पतला करने के लिये गोलिया खाता हुं , तेज दवा ले नही सकता, इस लिये फ़िर से आप सभी को टिपण्णियां नही लिख पा रहा, ओर ना ही कोई लेख लिख पा रहा हुं, कल बेटे को बोला कि मेरी टांगे पेरो से पकड कर बारी बारी झटका मार कर खींचो( ऎसा मैने बचपन मे देखा था) सो बेटे ने तीन चार बार पेर पकड कर झटका मारा, तब से ६०% आराम हे, लेकिन दर्द अभी भी बना हुआ हे, थोडा कम हे, शायद इस सप्ताह ठीक हो जाये.<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0j6DH2LiUTAEfXylblojmp3ykICCX5cS4yEin-_cvAmtSOa4xQ5w93zRPOVULVRYD3YqUmHzyZuwK9vLAOdBllpozecBqbuutRs-NBXqcZ7A5iE6SjYTRly3mB6HSDqDMMkqBOUoWFBM/s1600/11-peeth.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0j6DH2LiUTAEfXylblojmp3ykICCX5cS4yEin-_cvAmtSOa4xQ5w93zRPOVULVRYD3YqUmHzyZuwK9vLAOdBllpozecBqbuutRs-NBXqcZ7A5iE6SjYTRly3mB6HSDqDMMkqBOUoWFBM/s1600/11-peeth.jpg" /></a></div>
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वैसे तो मै परवाह नही करता, लेकिन जब शरीर मे दुख हो तो मन किसी बात मे नही लगता, ओर मै करीब दो महीने से घर पर ही बेठा हुं, आराम ओर सिर्फ़ आराम शायद १६ से फ़िर से अपनी दिन चर्या शुरु करुं, तभी आप लोगो के बलाग पर टिपण्णियां भी जरुर दुंगा, वैसे पढाता बहुत से ब्लाग हुं, पुरानो के संग नये ब्लाग भी, तो सा्थियो अगर भगवान ने चाहा तो बहुत जल्द आप सब के बीच आऊंगा, तब तक सब को हाथ जोड कर नमस्ते, सलाम, राम राम<br />
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राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com36tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-75653531415629059632011-06-07T20:57:00.000+02:002011-06-07T20:57:23.701+02:00भाई कुछ दिनो बाद आऊंगा...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">आज कल अपने देश की खबरे देख सुन कर दिमाग खराब होता हे, कहां हम विदेशो मे देखते हे, ओर सोचते हे हम तो इन से ज्यादा मेहनती हे, ओर हमारे देश मे सब कुछ होता हे, ओर हमारे देश मे शिक्षा की भी कमी नही, फ़िर क्यो हम एक एक रोटी को तरसते हे, मै कुछ लोगो की बात नही करता, कुछ लोगो के पास तो इतना हे कि अगर वो दोनो हाथो से लुटाये तो भी खत्म ना हो, मै तो आम भारतिया की बात कर रहा हुं.<br />
अब पिछले दिनो जो देखा सुना, इन सब बातो से दिमाग सुन्न हो गया, अगर ऎसे नेता विदेश मे होते तो कभी के माफ़ी मांग कर सारा धन वापिस कर के कही शर्म से मुंह छुपे होते, लेकिन हमारे यहां तो एक चोरी फ़िर सीना जोरी.... यह सब देख कर आजकल मन बेचैन हे, इस लिये कुछ समय मै ब्लाग से दुर ही रहना चाहता हुं, क्योकि हर किसी के अपने अपने विचार हे, ओर मै नही चाहता कि मेरा किसी से विचारो मे टकराव हो, जब मुड ठीक होगा वापिस आऊंगा, राम राम</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com38tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-15535060929146314282011-06-06T16:29:00.000+02:002011-06-06T16:29:13.081+02:00एक छोटी सी भूल ओर सॊंहलवा जन्म दिन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">फ़ेस बुक के कारनामे अजीब अजीब होते हे, हमारे यहां जर्मनी मे एक बच्ची अपना १६वां जन्म दिन मनाना चाहती थी, उस ने अपने सभी दोस्तो को वैसे तो स्कूल मे, ओर फ़ोन पर सुचित कर दिया था, फ़िर उस ने फ़ेस बुक पर भी अपने दोस्तो को अमत्रित किया, ओर दोस्तो से पूछा कि कोन कोन आना चाहता हे कृप्या अपना नाम लिखवा दे..... लेकिन यह क्या, दुसरे दिन सुबह जब इस बच्ची ने फ़ेस बुक पर अपना खाता खोला तो वहां १५ हजार लोगो ने अपना नाम दर्ज करवा दिया था,<br />
<br />
अब यह बच्ची डर गई ओर अपने मां बाप को बतलाया कि मेरे से एक छोटी सी भुल होगई, मैने फ़ेस बुक पर प्राईवेट पार्टी नही लिखा था, ओर यह देखो करीब १५ हजार लोगो ने आना हे अब... मां बाप भी यह देख कर घबरा गये, ओर सब से पहले पुलिस को सुचित किया, फ़िर फ़ेस बुक पर अपनी गलती सुधारी.<br />
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शाम को करीब २,३ हजार लोग फ़िर भी आ गये, आने वाले अपने साथ खाने पीने का समान तो लाये साथ मे तोहफ़े भी लाये, वहां पुलिस को भी अपनी डुयटी देनी पडी ओर उस बच्ची के घर के चारो ओर की सडको पर खुब भीड हो गई, लोगो ने खुब मजे से यह पार्टी मनाई, लेकिन बच्ची को मां बाप ने पहले ही दादी के घर भेज दिया था, ओर लोग शुभकानाये दे रहे थे , पडोसी पहले हेरान परेशान हुये, फ़िर नाराज हुये, जब सारी बात पता चली तो सब ने मिल कर इस पार्टी का मजा लिया.<br />
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यहां युरोप मे ऎसी पार्टी वगेरा पर मेहमान खुद ही थोडा थोडा बना कर ले आते हे, ओर फ़िर सब मिल कर खुब मजा लेते हे</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com33tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-8482329270714479112011-06-03T14:22:00.002+02:002011-06-03T14:23:11.306+02:00क्रिकेट मेच का जब हमने अपने दोस्तो के संग देखा...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">यह पोस्ट मैने बहुत पहले लिखी थी, किसी कारण यह नजरो मे नही पडी यानि आंख बचा कर छुप गई थी आज इसे मिटने लगा तो सोचा अरे नही इस पोस्ट ही कर देता हू; तो लिजिये.... <br />
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इस बार मेरे यहां मेच का लाईफ़ प्रसारण आ रहा था, ओर मैने इस बार भारत के कई मेच देखे, आस्ट्रेलिया को हराया, फ़िर पाकिस्तान को रोंदा यह सब देखा धडकते दिल से, हमारे बुजुर्ग हे ग्याणेशवर दयाल गुप्ता जी, लेकिन सब उन्हे इज्जत से दयाल जी कहते हे,जब हमारा मेच पाकिस्तान से था उस वाले दिन उस का फ़ोन बार बार आये कि हाय हम तो हार रहे हे... जब कि मै उन्हे बार बार कह रहा था, द्याल जी होसल्ला रखे, जब जीत गये तो मैने उन्हे बताया, कि मै तो टी वी पर देख रहा हुं. फ़िर तय हुआ कि कुछ परिवार जिन के पास मेच लाईव नही आ रहा, मै उन्हे अपने घर आने का निमत्रण दुं,<br />
<br />
फ़िर मैने सब से पहले दयाल जी को बीबी समेत आने का निमत्रंण दिया, फ़िर ड्रा० नरेश जी को जो क्रिकेट के दीवाने भी हे, ओर हमारी बीबी ने दुसरे दिन के खाने के लिये सब्जियां बगेरा सब बना ली, ओर मैने मेच के दोरान खाने का समान पहले ही तेयार कर लिया, (पिस्त्ता, काजू, कार्नफ़लेक्स, दाल भुजिया ओर पान)<br />
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सुबह जल्दी उठे ओर बीबी ने अपनी रोजाना की पुजा पाठ कि, मै भी आज सुबह सवेरे नहा लिया, ओर फ़िर तंगडा नाश्ता किया, इतने मे कब दस बजे पता ही ना चला, फ़िर टी वी चालू किया, मेदान मे काफ़ी लोग इधर उधर घुम रहे थे, थोडी देर मे ही कार्य कर्म शुरु हो गया, जब दुसरी बार टास हुआ तो द्याल जी सपत्निक आ गये, ओर फ़िर दोनो देशो का राष्ट्रिया गान शुरु हुआ, टास हारने से दिल को एक झटका सा लगा,<br />
<br />
फ़िर सभी खिलाडियो ने अपना अपना स्थान सम्भाल लिया,ओर अभी दो बाल ही खेले थे कि इतनी देर मे ड्रा० नरेश सपत्निक ओर अपने छोटे बेटे के संग आ गये, सब ने जल्दी जल्दी अपनी जाकेट बगेरा मुझे पकडाई ओर टीवी के सामने बेठ गये,ओर श्री लंका-भारत का खेल देखते रहे, पुरा खेल ठीक रहा लेकिन अंत मे जब लंका ने काफ़ी रन बटोरे तो हम सब प्राथना करने लगे कि यह सब आऊट हो जाये, क्योकि हम सब ने पहले ही आंदाज लगाया था २४०-५०.... चलिये राम का नाम ले कर खेल खत्म हुआ, हमारे यहां शायद २ या २,३० बज गये थे, हमारी बीबी ओर मिसेज दयाल जी ने मिल कर झट पट रोटिया बनाई, सब ने मिल कर खाना खाया, ओर मैने जल्दी जल्दी बरतन मशीन मे डाले दिये, इतनी देर मे मेच भी शुरु होने वाला हो गया, दयाल जी को फ़िक्र हो रही थी कि कही मेच हार ना जाये, लेकिन हम ने कहा दयाल जी हमारे शॆर भी जीतना चाहते हे, बेफ़िक्र रहे...<br />
<br />
अब भारत का खेल शुरु.... पहली बाल , फ़िर मालिंगा ने दुसरी बाल फ़ेंकी... ओर एक जबर दस्त झटका... दयाल जी को पहले तो पता ही नही लगा, जब हम ने बताया कि सहवाग गया तो बोले हम गये... इतना बडा स्कोर ओर टाप के खिलाडी.आऊट.., तभी गंभीर आये खेल कुछ आगे बढा उन का पावर पले साफ़ लिखा था, तभी ६ ऒवर की पहली गेंद पर सचिन जी गये.... अब तो यह झटका पहले से ज्यादा लगा, लेकिन हम ने सोचा अभी हे हमारे ओर भी अच्छॆ खिलाडी, लेकिन दिल मे डर ओर दयाल जी बीच बीच मे बोल कर हमे ओर भी डरा दे, चलो अब तो हार गये , हम दयाज जी को बार बार बोले रहे थे... दयाल जी ऎसे ना बोले...<br />
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अब गंभीर का साथ देने आये बिराट कोहली जी, अंदर से मै भी ओर बाकी सब देखने वाले थोडा डर तो गये, लेकिन कही दिल से आवाज आई कि आज तो हमी जीतेगे, ओर ड्रा० नरेश यही कह रहे थे कि इन की जोडी जम जाये, दयाल जी बार बार कहते अरे बडी धीरे धीरे रन बना रहे हे, यह चोके छीके क्यो नही मार रहे, अगर ऎसे ही खेलते रहे तो हम हार जायेगे, तो ड्रा० नरेश जी ने समझाया कि दयाल जी देखो हमारा रन रेट श्री लंका से अच्छा हे, यह दोनो सही खेल रहे हे, अगर ऎसे भी खेले ओर जम जाये तो हम जीत सकते हे,<br />
<br />
खेल थोडा जम गया ओर हम सब मे जान आई, चेहरो पर थोडी चमक, अभी २१ ओवर ओर तीन बाल ही खेले थे, यह ऒवर दिल शान का चल रहा था, ओर अगली बाल पर ही उस ने अपना बदला ले लिया, यानि गंभीर आऊट, अब हम सब को बेचेनी हुयी, कि कही सच मे ही आज शर्मनाक हार ना हो जाये, अब तो दयाल जी ने भी कह दिया कि अब तो अच्छॆ खिलाडी गये, धोनी ने इस बार अच्छा नही खेला, अब तो जरुर हार जायेगे, मैने ड्रा० नारेश ओर उन की बीबी की ओर देखा फ़िर मैने कहा नही दयाल जी आज तो हम जरुर जीतेगे, आप हिम्मत ना हारे.<br />
<br />
फ़िर धोनी जनाब आये, लेकिन हम लोगो को धोनी से उम्मीद कम ही थी, लेकिन अच्छा खिलाडी हे इस लिये नाउम्मीद भी नही हुये, अब ड्रा० नरेश कहने लगे अब इस जोडी को जमना चाहिये, ओर उन की बात सही निकली, ओर यह जोडी जम गई, अब मलिंगा या कलिंगा को लेने के देने पड गये, ओर उस के सारे उपाय बेकार, अब हम लोगो के चेहरे पर बहुत चमक आ गई कि अब जीत करीब आ रही हे, दयाल जी फ़िर बोले कि यह रन धीरे धीरे बना रहे हे, इन्हे चोकै छक्के मारने चाहिये अभी अभी ४१ ऒवर शुरु हुआ, केप्टन धोनी ने गंभीर से कुछ कहा, ओर गंभीर के ९७ रन थे, हमे उम्मीद थी की यह शतक जरुर बना लेगा, लेकिन ४१वे ऒवर की दुसरी गेंद पर.....गम्भीर भाई आऊट, लेकिन अब डर थोडा कम हो गया था हार का, लेकिन फ़िर भी थोडा डर था, उम्मीद थी तो अभी युवराज , रेना, भज्जी पर.<br />
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तभी युवराज आये ओर उन्होने अंत तक धोनी का साथ निभाया, अब स्क्रीन पर गेंद ओर रनो का अंतर दिखा रहे थे, दयाल जी बार बार बोल रहे थे कि गेंदे कम हे ओर रन ज्यादा, तो हम उन्हे कह रहे थे कि दयाल जी ज्यादा अंतर नही, यह आखरी पांच ऒवरो मे कवर कर लेगे, ओर फ़िर धीरे धीरे अंतर खत्म अब बराबर बराबर थे बाल ओर रन... फ़िर धीरे धीरे बाल ज्यादा होगी ओर रन कम ओर फ़िर जब अंत मे धोनी ने छक्का मार कर जीत हासिल की तो कमरे मे बेठे सभी लोगो ने बहुत जोर से हल्ला मचाया जरुर हम सब की आवाज पुरे गांव मे सुनाई दी होगी, तभी ड्रा नरेश ने कहा अगर शहर मे होते तो अभी तक पुलिस आ गई होती, फ़िर मैने सब मे मिठ्ठाई बांटी( यह मिठ्ठाई ड्रा नरेश जी ले कर आये थे, अब रात के ७,३० होने वाले थे, बीबी ने जल्दी जल्दी चाय काफ़ी बनाई समोसे गर्म किये केक काटा ओर सब ने मिल कर खाया, ओर फ़िर सब रात ९ बजे अपने अपने घर चलेगे, हां भारत जीतते ही भारत से सभी को बहुत फ़ोन आये, अब द्याल जी को भी समझ आ गई कि अगर भारतिया टीम जल्द वाजी मे खेलती तो रजल्ट कुछ ओर होना था, हमारी टीम ने आराम से खेला ओर रन रेट कम नही होने दिया, कोई जल्द वाजी नही दिखाई, जब की श्री लंका की टीम दिन मे भी ओर दोपहर बाद भी साफ़ दबाब मे दिख रही थी,चलिये अब मेच खत्म, आप लोगो ने देखने समय क्या महसुस किया जरुर लिखे</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-39428277802418274992011-05-17T12:09:00.000+02:002011-05-17T12:09:45.698+02:00बुरी नज़र वाले......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">बुरी नज़र वाले, तेरा मुंह काला “रिश्ते में लगता तू साला,<br />
बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला.”<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZZxm8wAcwUHxJSqXCfkvm7ln7UwkM93EHgurAyy2Ivyhe8pD8c2NGCNAtfKRkJD4H2hl7piYvJ23wVmjks6ASAkF4EUnXST1dTefPfyEHmpV5FT7xdfh9fhGq9DXq2NMHi_aJ7zVSC-Y/s1600/he+ram.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZZxm8wAcwUHxJSqXCfkvm7ln7UwkM93EHgurAyy2Ivyhe8pD8c2NGCNAtfKRkJD4H2hl7piYvJ23wVmjks6ASAkF4EUnXST1dTefPfyEHmpV5FT7xdfh9fhGq9DXq2NMHi_aJ7zVSC-Y/s320/he+ram.jpg" width="320" /></a></div><br />
“बुरी नज़र वाले, तेरे बच्चे जियें, बड़े होकर, देसी शराब पियें”<br />
“छोटा परिवार, सुखी परिवार एक या दो, बस “<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg38AmKCyqIZ6bVtwEe21Kj0D6zWCTJb84JQ6gDF1v9P4S0HGF1j-iHTNOoFbjKXE7WUjdoXsGoCvwNW6bJO3wgY5MB_l5YdPQ4ktIghXcZfUDUytk6jXPOOvCaCALh4cwVKdK40dGotbA/s1600/kay+khey.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="220" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg38AmKCyqIZ6bVtwEe21Kj0D6zWCTJb84JQ6gDF1v9P4S0HGF1j-iHTNOoFbjKXE7WUjdoXsGoCvwNW6bJO3wgY5MB_l5YdPQ4ktIghXcZfUDUytk6jXPOOvCaCALh4cwVKdK40dGotbA/s320/kay+khey.jpg" width="320" /></a></div><br />
शेर दो हों मगर सलीके के, घर को ऐसी ग़ज़ल बनाना है<br />
“चल हट, कोई देख लेगा"<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicL_QAUtlhcROaDel2woPvST-Qi4OjlfjY0tFZi-d74FnJNS8jNhZOhrwv5NtNJf4Ng6NA4GgjRce-XSXH-m1albU7oygSJlCkO1LQxnPI0Bpe_teTdTfALp1DjajBv4V2glJ_95zFieU/s1600/rbb+o+rabb.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicL_QAUtlhcROaDel2woPvST-Qi4OjlfjY0tFZi-d74FnJNS8jNhZOhrwv5NtNJf4Ng6NA4GgjRce-XSXH-m1albU7oygSJlCkO1LQxnPI0Bpe_teTdTfALp1DjajBv4V2glJ_95zFieU/s320/rbb+o+rabb.jpg" width="320" /></a></div><br />
“देखो मगर प्यार से"<br />
“दुल्हन वही जो पिया मन भाये, गाड़ी वही जो नोट कमाए"<br />
“काला कुरता, काला चश्मा, काला रंग कढाई का, एक तो तेरी याद सताए, दूजा सोच कमाई का."<br />
“चलती है गाड़ी, उड़ती है धूल, निकलता है पसीना, बिखरते हैं फूल"<br />
“अमीरों की ज़िन्दगी, बिस्किट और केक पर, ड्राईवर की ज़िन्दगी, क्लच और ब्रेक पर.<br />
" बीवी रहे टिपटॉप दो के बाद फुल स्टॉप<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVhrX0G30OcDmx-RFYjJ27Cnnm22BY7rL4AKVwtfWqtfIq6nn0eWS0yRDvs5o6Ayv1q_iCPb84OekakWdGoAkZWZr1dAMMbHKdBp4DjTczLsIHwTayINehVJl5q16_KdEN9kFc2TONLGw/s1600/had+he+ji.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="187" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVhrX0G30OcDmx-RFYjJ27Cnnm22BY7rL4AKVwtfWqtfIq6nn0eWS0yRDvs5o6Ayv1q_iCPb84OekakWdGoAkZWZr1dAMMbHKdBp4DjTczLsIHwTayINehVJl5q16_KdEN9kFc2TONLGw/s320/had+he+ji.jpg" width="320" /></a></div>बुरी नज़र वाले तू जिए, और तेरा बेटा बड़ा होकर तेरा खून पिए</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com47tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-62847437945851974282011-05-11T17:02:00.000+02:002011-05-11T17:02:34.790+02:00एक नया ब्लाग आप सब के लिये..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">आप सब के लिये, आप के बच्चो के लिये, आप के पडोसियो के लिये ,रिश्ते नाते दारो के लिये, मित्रो के लिये, जान पहचान वालो के लिये... यह ब्लाग बहुत अलग हट के, आज नही तो कल आप के काम आ सकता हे, सेवा बिल्कुल मुफ़त...<br />
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<b style="color: red;"><a href="http://blogmatrimonial.blogspot.com/">चलिये ज्यादा पहेली वाजी नही करता आप खुद जा कर यहां देख ले, यहां किल्क करे ओर पहुच जाये इस नये ब्लाग पर....</a></b></div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-60679599786022894472011-05-07T09:18:00.001+02:002011-05-07T09:21:42.079+02:00नारी यह रास्ता तो बहुत अच्छा हे हम भी तेरे साथ हे.....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मै रोजाना कि तरह पहले मेल चेक करता हुं फ़िर समाचार पढता हुं, आज इस समाचार पर नजर पडी तो , इसे पुरा पढा ओर यह समाचार सच मे मन मे बस गया... काश हमारे देश मे सभी नारिया ऎसा करे, काम कोई कठिन नही, लेकिन बहुत से संगठन बाते तो बहुत करते हे नारी आजादी की... लेकिन तोडते तिन्का भी नही, ओर देश मे कानून की धज्जिया सरे आम उडाई जाती हे....<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxAa1eKdLifF1fTXRRdrZGVr0cwtR0Kvq3nMuEF4wv1sWT5UK81C_Qod162gdlNfvGC_OPC2ufhO28qzEKQDR-L1ETamIel3L0Th57yiu6lFQ8NW71p7qBRC4_0p1_K_8kG3r-zMOEWww/s1600/cute_kids2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxAa1eKdLifF1fTXRRdrZGVr0cwtR0Kvq3nMuEF4wv1sWT5UK81C_Qod162gdlNfvGC_OPC2ufhO28qzEKQDR-L1ETamIel3L0Th57yiu6lFQ8NW71p7qBRC4_0p1_K_8kG3r-zMOEWww/s1600/cute_kids2.jpg" /></a></div><br />
<a href="http://draft.blogger.com/goog_1384469318">आईये आप भी एक नजर इस खबर पर डाले.... इस खबर को पढने के लिये यहां किल्क करे.. मै इस महिला को नमन करता हुं</a><br />
<h1 class="font-installed"><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/05/110506_cj_tara_pa.shtml">एक कोशिश हिम्मत भरी...</a></h1><h1 class="font-installed"> </h1></div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com26tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-25122698846445823672011-04-28T18:38:00.000+02:002011-04-28T18:38:11.249+02:00पैसा पैसा हाय पैसा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">कुछ दिन पहले एक नामी गिरामी बाबा चल बसे, अब यह कैसे बाबा थे, जो आदमी की जेब देख कर ही दर्शन देते थे, अब जब मर गये तो अपने पीछे आकूत दोलत छोड गये, उस दोलत के लिये उसी के बंदे जो उस के धंधे मे शामिल थे लड रहे हे, सभी को अपनी अपनी पडी हे, यानि वह दोलत जो उस बाबा ने जादू दिखा कर लुटी, भोले भाले लोगो से, लालची लोगो से, दुसरो को लुटने वालो से, इन नेताओ से, वगेरा वगेरा...इस आकूत दोलत मे से एक पैसा भी बाबा के संग नही गया, बस उस बाबा के कर्म ही उस के संग गये हे, ओर इस खेल को मै रोजाना समाचार पत्रो मे पढ रहा हुं, आज एक विचार आया मन मे सो आप सब से बांटना चाहा, हम आराम से अगर रोजाना मजदुरी कर के जितना कमा लेते हे, वो हमारे लिये ओर हमारे परिवर के लिये काफ़ी होता हे,हम उस मे किसी का हक भी नही मारते, फ़िर हमे अच्छॆ कर्म करने की जरुरत भी नही होगी, क्योकि हम पापो से तो दुर ही हे,अगर सभी हमारी तरह से सोचे तो इस भारत क्या पुरी दुनिया मे कोई भुखा ना सोये.<br />
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इस बाबा ने तडप तडप कर ही अपने प्राण छोडे हे, उस की आकूत दोलत भी उस के पराण नही बचा पाई, उस की भक्ति भी उसे नही बचा पाई, बाल्कि भगवान भी उसे सबक देना चाहता था, उस के संग हम सब को भी एक सबक इस बाबा की मृत्यु से लेना चाहिये कि हमारे संग कुछ नही जाना, तो क्यो हम दुसरो का हक मार मार कर बेंक बेलेंस बढाने पर लगे हे, क्यो खुद भी सुख से नही रहते ओर हजारो लाखो की वद दुआ भी लेते हे, यह अरब पति, करोड पति, लखपति क्या मेहनत से ईमानदारी से बने हे, यह नेतओ ने जो काला धन स्विस बेंक या अपने रिशते दारो के नाम से जमा कर रखा हे, क्या इस धन से यह आसान मोत मरेगे? या स्वर्ग मे जायेगे? या मरने के बाद अपने परिवार को सुख शांति दे पायेगे? तो क्यो यह दुसरो के मुंह से निवाला छीन कर दुसरो को दुखी करते हे, अपने चंद पल खुशी मे बिताने के लिये क्यो यह लाखॊ अरबो की बद दुयाऎ... नन्हे नन्हे बच्चो के मुंह से दुध छीन कर यह अपने पेग पीते हे, क्या यह सब सुखी रहेगे? कई लोग कुत्तो की तरह से भीख मांग कर खाते हे इन की वजह से, क्या यह अपने परिवार को सुख शांति दे पायेगे,<br />
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हम सब की जिन्दगी कितने बरस की हे, ओर उस दोरान हम इस समाज को इस दुनिया को क्या दे रहे हे? जो दे रहे हे, वो तो हम एक कर्ज दे रहे हे, कल को ब्याज के संग हमे वापिस तो मिलेगा ही, उस समय जब हम एक एक सांस के लिये तडपेगे तब पशछताने से क्या लाभ, जानवर भी सदियो के लिये खाना जमा कर के नही रखते, चुहे, ओर चींटिया भी ३, ४ महीने का खाना ही जमा रखती हे, ओर हमारा बस चले तो हम अपनी बीस ्पिढियंओ के लिये जमा रखे, जब कि हमे पता नही हमारी अगली पिढी भी आयेगी जा नही,ओर अगर आई तो वो केसी निकलेगी? कोकि कोई भी हराम की कमाई खा कर हलाल का काम नही करेगा.<br />
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हाय पैसा हाय पैसा कया करेगे यह इतने पैसो का, अपने कुछ साल तो ’ऎश मै बिता लेगे, बाकी परिवार इन के जाते हे आपस मे लडेगा; भाई भाई दुशमन बन जाते हे, अपनी जिन्दगी के कुछ साल ऎश मे बीताने के लिये क्यो हजारो लाखॊ को दुखी करते हे,कितने लोग भुख से मरते हे, कितने बच्चे बिना दुध के बिना दवा के मरते हे, उन सब के जिम्मेदार यही लोग हे जो पैसा पैसा करते हे... सीखॊ इस बाबा के अंत से कुछ अब भी सुधर जाओ</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com50tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-470646038103591842011-04-21T12:30:00.000+02:002011-04-21T12:30:14.162+02:00घर मे दाना नही अम्मा पिसाने चली?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अजी यह कहावत तो हे लेकिन यहां से सच साबित हो रही हे...<br />
<h1 class="font-installed" style="background-color: white; color: orange; font-weight: normal;"><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/pakistan/2011/04/110421_pak_india_trade_hc.shtml">'भारत देगा पाकिस्तान को सस्ती बिजली'</a></h1><h1 class="font-installed"> <span style="font-size: x-small;">आप भी इस खबर पर किल्क कर के पढ ले...<span><span style="background-color: #fff2cc;"></span></span></span></h1></div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com33tag:blogger.com,1999:blog-5924567198968050012.post-72793876836553938752011-04-17T11:30:00.004+02:002011-04-17T11:30:49.710+02:00मै ओर मेरी हल्दी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आज कई दिनो बाद आप से मिलने आया हुं, कारण... हमारी साली साहिबा हमारे यहां आई थी, जिन के संग सारा दिन आवारा गर्दी, कभी यहां घुमने गये तो कभी वहां, यानि पुरा युरोप एक बार फ़िर से घुम लिये पिछले १० दिनो मे, बीच बीच मे जब भी समय मिलता मै नेट पर कुछ देर के लिये जरुर आता था, ओर दिन मे एक टिपण्णी जरुर दे देता था, फ़िर साली साहिबा अपने बाल बच्चो के संग वापिस चली गई, हमे छोड के ... जब कि मोसम बहुत अच्छा था तो हम ने अपने गार्डन मे ही थोडी बहुत नही... बहुत ज्यादा सफ़ाई कर ली, ओर क्यारी तेयार कर ली, जिस मे कल धानिया, पुदिना, हरी मिर्च के बीज ओर सरसो वो दुंगा, यहां माली भी तो खुद बनाना पडता हे,ओर यहां का धानिया उतना अच्छा नही होता जितना खुश्बु दार अपना धानिया होता हे, ओर पुदिना तो बहुत किस्म का मिलता हे, लेकिन अपने वाला ही हमे पसंद हे, इस लिये वोही वो लेते हे, फ़िर सरसो तो यहां खेतो मे खुब होती हे, लेकिन उस पर दवा बहुत छिडकते हे, दुसरा उसे हम तोड भी नही सकते बिना पुछे, क्योकि वो चोरी हुयी इस लिये हम उसे भी वो लेते हे, थोडी जगह मिलती हे तो उस मे हरी मिर्च, ओर प्याज वो लेते हे, बाकी जगह पर फ़ुल ओर घास , हां गमलो मे टमाटर भी तो बोते हे, ओर कद्दू भी बोते हे, एक बार हमारे यहां कद्दू २५ किलो का हुआ था.<br />
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हम जब भी यहां अपना खाना( भारतिया) खाते हे तो दांत पीले पड जाते थे, बच्चो ने तो सब्जी खानी ही छोड दी या बिना हल्दी के सब्जी बनती थी, किसी ने बताया की हल्दी मे यह रंग डालते हे, जो सब्जी मे रंगत लाता हे, ओर हमे तो स्वादिस्ट सब्जी चाहिये बिना रंग के, तो भाई पिछली बार हम साबूत हल्दी १ किलो लेते आये भारत से, अब इसे यहां पीसे कैसे, पहले हथोडी से तोडनी चाही, लेकिन बिखर जाये, फ़िर पेपर मे लपेट कर तोडनी चाही, वो भी काम नही बना जो थोडी बहुत टूटी उसे पीसना बहुत कठिन, पुरे सप्ताह मे दो चम्मच ही पीस पाये.<br />
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लेकिन भारतिया दिमाग जुगाड से ही काम चलता हे ना, जैसे हमारा देश भी तो जुगाड से.... तो जनाब हमने पुरानी जींस का एक हिस्सा जेब की तरह से सिल कर उस मे हल्दी को पहले तोड कर ( हाथोडी से) छोटा किया, फ़िर उसे अपनी छोटी कुंडी मे थोडा ओर छोटा किया, फ़िर उसे अपनी चक्की मे पीस कर बारीक किया, ओर फ़िर उस से सब्जी बनाई जिस मे स्बाद बहुत अच्छा बना सब्जी का, ओर रंग बिलकुल भी नही, दांत बिलकुल साफ़, आप भी देखे हमारी चक्की नीचे सब चित्र दे रहा हुं.<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihNEbOlk8dv5u9REtRbjA6BAGw2i51QY9HhQZhJE37KCcsUh05ocnwm2Qyaaluf5ab1vvzC-cHnIjkbGD0EGZPFNH2ivogta-M3ccg-HnhSnLB0z3BPhBMZGE0hTBjpXFTnxEDna5S0yY/s1600/DSC03018.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihNEbOlk8dv5u9REtRbjA6BAGw2i51QY9HhQZhJE37KCcsUh05ocnwm2Qyaaluf5ab1vvzC-cHnIjkbGD0EGZPFNH2ivogta-M3ccg-HnhSnLB0z3BPhBMZGE0hTBjpXFTnxEDna5S0yY/s320/DSC03018.JPG" width="320" /></a>वैसे हम गर्म मासाला, ओर अन्य मसाले भी घर पर ही पीस लेते हे, बाजार से पीसे समान से डर लगता हे, वैसे तो यहां मिलाबट नही होती लेकिन अपने लोग रंग तो मिला ही देते हे... चलिये अब हमारी चक्की देख ले, वैसे इस चक्की वाली मोटर से हम सब्जियां भी काट लेते हे, आटा भी गुथ लेते हे, चिपस, भी बनाती हे कीमा भी बन जाता हे, ओर फ़लो का जुस भी इसी से निकला जा सकता हे.<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjncUsnNugLKsDj9-J735lCQvOiKzh2QSs57DWFFGiPn8Liqq2M8aLPP4cLPOsLobtJShD_9MbDt6NfubsBYbrEpcXxbkMpCDpKZtNp8PDeCpId6s6p7QaVOCEdQRkWRKofLwC8mKLtZBk/s1600/DSC03017.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjncUsnNugLKsDj9-J735lCQvOiKzh2QSs57DWFFGiPn8Liqq2M8aLPP4cLPOsLobtJShD_9MbDt6NfubsBYbrEpcXxbkMpCDpKZtNp8PDeCpId6s6p7QaVOCEdQRkWRKofLwC8mKLtZBk/s320/DSC03017.JPG" width="180" /></a></div><br />
इस मशीन मे दो बार इस हल्दी को डाला पहली बात चने जितनी बडी हल्दी थी, जब बार निकली तो काफ़ी बारीक थी, फ़िर दोबारा डाली तो पाऊडर बन कर निकली, आधा किलो को समय करीब १ घंटा लगा, साबूत से पाऊडर बनाने मे लेकिन बिलकुल साफ़ सुधरी ओर बिना रंग के. बताई केसी लगी.<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVf1jO9GAGMN8NQ9tVOv_7zS54bEw5nCC4WGs7Hu5P1zgVNa0oX441CwEpM2TIM35ET6g6PPOjOxgLEf7sNjokx_asWCMsuRV2_WpRl_1G3GjucIcou1jl11M5ASvDRwq_mh3SrFXd7Gs/s1600/DSC03019.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVf1jO9GAGMN8NQ9tVOv_7zS54bEw5nCC4WGs7Hu5P1zgVNa0oX441CwEpM2TIM35ET6g6PPOjOxgLEf7sNjokx_asWCMsuRV2_WpRl_1G3GjucIcou1jl11M5ASvDRwq_mh3SrFXd7Gs/s320/DSC03019.JPG" width="180" /></a>वैसे आप लोग भी सब मसाले घर मे ही पीसे तो कितनी मिलावट से बच सकते हे, गर्म मसाला जो पिसा पिसाया बाजार मे मिलता हे उस मे क्या क्या मिलाया जाता हे अगर यहां लिख दुं तो आप आज खाना नही खायेगे:) आज तो घर घर मे मिक्सर हे, तो घर मे ही गर्म मसाले ओर मिर्च ओर अन्य समाग्री पीस ले हल्दी भी घर मे ही किसी से पिसवा ले, मिलवटी खाने से कुछ तो बचता हो.<br />
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आज भी मेहमान आ रहे हे, कुछ ही समय के बाद, पता नही कितने दिन रहेगे, हमे तो खुशी होती हे, मेहमान आने पर, लेकिन उस के कारण आप सब से दुर हो जाता हुं, चलिये अब कपडे बदल लुं पता नही कब डोर बेल बजे... राम राम</div>राज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.com45